सितम की ये इंतेहा देखो, हथियार बनाया घूँघट को,
तेरी मुस्कान काफी है, क्यों जहमत देती घूँघट को।
इस खिले हुए गुलाब पर मैं भँवरा सा मंडराता फिरूँ,
महक को यूँ ना कैद कर, जरा हटा दे तू घूँघट को।
बेचैनी मेरी यूँ न बढ़ा, मेरे दिल पर जरा रहम तो कर,
हुस्न पर पर्दा नाजायज है, हौले से सरका घूँघट को।
नज़ारा नुमायां कर लेती हो तुम घूँघट की आड़ से,
दीदार हक से बेदखल न कर, जरा सरका घूँघट को।
कांधी बिजली, भड़का शोला, चाँद जमीं कौनसा है,
जब तुमने हटाकर गिराया, अपने मुखड़े से घूँघट को।
नजर से बचने का नहीं नुस्खा, काला टीका उपाय है,
नजर नहीं लगाऊंगा मैं, तुम बेपर्दा कर दो घूँघट को।
मेरी कत्ल करने की तेरी यह दिलकश साज़िश देखो,
गुजरती जब करीब से तो चेहरे से हटा देती घूँघट को।
माना लाज का ये पहरेदार है, जो तेरा पूरा अधिकार है,
तेरी हया की दुनिया 'राज' से है, विदा करो घूँघट को।
_राज सोनी-
रात जाती रही...भोर आती रही..
दिल में एक ख्वाहिश मचलने लगा...
रात थी चांँदनी... खताएँ दुल्हन बनी...
मन ही मन मैं थोड़ा शर्माने लगा...
पास आते गए...धड़कनें बढ़ने लगी...
अपने चँदा का घूंँघट मैं उठाने लगा...
जब लबों पे उनके...मैंने लब रख दिए...
प्रेम-रस में उन्हें फिर मैं भींगाने लगा...
प्रेम-रस में उन्हें फिर मैं भींगाने लगा..
- #shrAman
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औरत हूं मैं!!
चुप रहूं मैं, सहू मैं
बोलूं तो बदतमीज हूं मैं ,
औरत हूं मैं ।
घुंघट करूं मैं, सिर झुकाऊ मैं
देखे कोई और तो बदचलन हूं मैं
औरत हूं मैं।
पराए घर की मैं ,पराए घर से मैं
घर से ...बेघर हूं मैं
औरत हूं मैं ।
पढ़ी-लिखी मैं ,समझदार मैं
पेशे से...गृहणी हूं मैं
औरत हूं मैं ।
बेटी मैं ,पत्नी मैं
बात हक़ की तो ,
सिर्फ एक औरत हूं मैं
औरत हूं मैं ।-
श्वेत बादलों से ढका चांद -'यूं शर्मा रहा है'
मानो चांदनी घूंघट ओढ़े हो;
'और शौहर घूंघट हटा रहा हो! '-
तरस गई है ये निगाहें, उनके दीदार को।
और वो है के अभी तक घुंधट मेे बैठे है।।-
ऊपर जाते उस छोर को उसने,
थोड़ा नीचे सरकाया है,
घूँघट की ओट में कुछ ऐसे,
ज़ालिम ने चाँद छिपाया है।।-
कहां से लाये थे तुम, घूंघट का ये रिवाज़,
मास्क तक नहीं झिलता, जो तुमसे आज़।
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आत्मा बदल जाती है ,
जब वो ससुराल जाती है !
घूंघट से झांकती है ,,
तब दुनिया नजर आती है !!-
NAZARR SAMNE WALE KI KHARAB HAI...
AUR GHUNGHAT HUMSE KRWAATE HAI...
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