"ताउम्र की गुलामी मंज़ूर की थी ना मैंने, तुम रिहाई चाहते थे....
तो अब मेरे कंगन का,घड़ी में तब्दील हो जाना,
क्यों खलता है तुम्हें...???"
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जितना संभालू उतना फिसलता है..
ऐ वक्त..तु घडी़ दो घडी़ क्यों नहीं ठहरता है
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Kbhi chalti hai... Kbhi thamti hai...
Ye ZINDAGI hai.. Ya koi.. Ghatia ghadi
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जीने के लिए...
सांसों से जुड़ी होती है हर सांस की कड़ी
पल भर न रुकती है ज्यो बढ़ती जाए घड़ी-
हम तोहफ़े में एक दूसरे को घड़ी तो दे देते,
पर... वक्त नहीं दे पाते हैं..
गिफ्ट से ज्यादा वक्त दे तो, रिश्ते नहीं टूट पाते हैं..
वक्त देने के चक्कर में आख़िर, वक्त से ही मुंह फेर लेते हैं..
जहां होना था इश्क वहा, मशवरे जगह घेर लेते हैं..
वक्त देकर भी देख लिया, बहुत गहरे ज़ख्म ही मिलते हैं..
साथ थे तब वक्त नहीं था, अब ये घड़ी क्यों संभाली हैं..
घड़ी को इल्जाम देने से क्या फायदा,
जब तकनीकी घड़ी नहीं दे पाए हैं..
शायद हो सकता ये घड़ियां हमें, एहसास दिलाने आई हैं..
निगाह घड़ी पर लगी रहती जैसे, मिलने की घड़ी पास आई हैं।।
_v_p@rm@r-
Tumhari pehli gift yaad hai na...
Ek ghadi tha, jo uss turning pe
band ho gaya tha...
Wakt toh chalta rehga
Par iss ghadi Ko main kabhi
thik nahi karwaunga,
ye band ghadi mujhe hamesha
yaad dilayegi hum dono ki
thame hue uss wakt ki...
Main isse kabhi bhi
thik nahi karwaunga-
घड़ियों की टिक-टिक के संग बहुत रोया हूँ,
बस इसलिए आज वक़्त को सिरहाने रख कर सोया हूँ।-
तेरी "मोहब्बत" को छूना यूँ " मुनासिब" ना होगा "अर्श"
और "तारीफ" में दो लफ्ज़ जमा करें, इतने काबिल भी नहीं हैं हम !!!
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मसला ये नहीं की तुमने हमें
तोहफे में घङी दी,
मसला तो ये हैं की तुमने हमें घङी तो दे दी
मगर अपना वक़्त नहीं दिया.....-