शहर में यूँ तो उनदिनों रास्ते तमाम हुआ करते थे!
लेकिन....
हम सब छोड़ उसकी ही गली से गुजरें,
ये सिलसिले भी आम हुआ करते थे!-
कौन है उधर बतलाओ, मुझे धुँध में दिखाई नहीं देता l
नज़दीक आकर गालियां दो, दूर का सुनाई नहीं देता ll
کون ہے وہاں بتلاؤں مجھے دھند میں دکھائی نہیں دیتا-
نزدیک آ کر اظہار کروں دور کا سنائی نہیں دیتا--
Uski Raaho ki Hawayein mujhe Uska Haal Kehti Hai
Use Naa Dekhne Par ye Nigahe kitna Dard Sehti Hai
Jabse Uski Raaho Par Guzarna Chhod Diya hai Maine
Suna Hai Ab Uski Galiyan Ab Sunsaan Rehti hai...-
उसके घर के सामने से गुजरना, कुछ यूँ हुआ था ।
जैसे बरसात के रंगीन फ़िज़ाओं में,मौसम धूप का हुआ था ।।
कदम रखते ही उस गली में,महसूस यूँ हुआ था ।
चलते-चलते कदम ,पल भर में रुक सा गया था ।।
वो कभी तेरी गालियों से गुजरना,चाहत हुआ करती थी ।
उन गलियों में गूँजती आह,मेरा सुमार हुआ करती थी ।।
जो कभी कुछ अल्फ़ाज़ सुनती, सुनाया करती थी ।
हर वक़्त मुस्कुराहट इस चेहरे पर हुआ करती थी ।।
वहां उस चौराहे का शोर,कानों में गूंजा करता था ।
कल,जिसने मेरे अंदर गहरी खामोशी ने घर बना रखा था ।।
जहा,कभी मेरी खबर कोई पता हुआ करता था ।
आज मेरा वजूद उन गलियों में लापता हुआ था ।।
छड़ भर में ही क़दम मेरे वापिस आने को कर रहे थे ।
जो कभी वापिस आने को लड़खड़ाया करते थे ।।
फिर कैसे आज उन गलियों से मुस्कुरा कर निकलती ।
जो धुंधली सी यादें ,उन गलियों में चुभ सी रही थी ।।
-Dr.Priya-
मैं दुनियां में हूं मगर उसका
नहीं हूं उसकी गलियों से,
गुज़रा हूं पर उसे देखा नहीं...
♥️🖤-
मैं जब भी उसकी गली से गुजरता
वह चुपके से मुझे देखती थी,
दरवाजे पर कभी सामने ना आ कर
वातायन से छुप के देखती थी।
कभी देखती थी नजरें झुका कर
कभी पलकों के चिलमन से देखती थी,
कभी देखती थी अपने घर से
कभी पड़ोसी के घर से देखती थी।
कवि सुमित मानधना 'गौरव'-
Aaj ham phir se tumhare galiyon me aaye ....
Ki ,Dil ko na sahi pr in aankhon ko to aaram mil jae...-
आज फिर मुझे मेरा अतीत याद आया उस
की गली में मेरा होना ना होना बराबर था-
Badnaam galiyon se koi shaunk se guzra nahi karta,
Halaat majboor kar dete hain gustakhi krne ko.
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ना जाने कियों तेरी गली मुझे जन्नत से प्यारी
लगी शायद तेरा वहाँ होना यह एहसास दिला गया-