उसके लिए तो लफ्ज ही नही
वो एक अलग अंदाज है
लिखूं उसकी तारीफ में,
कुछ अपनी कलम से
तो खुद पर मुझे नाज है
जो खोया था अपना कुछ भी
वो सब उसमें पाया है,
मेरी बंजर सी जिन्दगी में
वो बारिश बनके आया है
दिनभर कि बातों में है वो
रातों को सपनो में छाया है,
खुदा कहूँ या फरिश्ता है वो
हर इबादत में लफ्जो पर आया है
यूँ ही नहीं है वो जान मेरी
दिल से उसे अपनाया है,
ओर इस जहांन में वो
सिर्फ मेरा बनके आया है
सब कुछ तो ना सही इन लफ्जो में
पर दिल कुछ तो कह पाया है,
ओर पीछे छोड़ मैंने सब तारों को
अपने आसमाँ का चाँद उसे बनाया है !
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