मैं कुछ इस तरह बिखर रही थी
साँसे कुछ थी दबी सी,कुछ चल रही थी
मैं कुछ इस तरह बिखर रही थी...
बहुत कुछ था कहने को,
पर सारी बातें दिल पर बोझ बन रही थी
चेहरे थे बहुत आँखों में,
जिन्हें मैं आँशुओ से धुल रही थी
मैं कुछ इस तरह बिखर रही थी
कुछ पल तक सब साथ थे,
पर मैं खुद को सबसे दूर कर रही थी
इस हद तक चुप थी,
मेरी आवाज मुझ तक भी ना पहुँच रही थी
मैं कुछ इस तरह बिखर रही थी
खुद को खुद में कैद करके,
मेरे बदन के साथ रूह भी काँप रही थी
अंदर एक तूफान था,
ओर बहार बारिश रुक नही रही थी
मैं कुछ इस तरह बिखर रही थी
सब रुक सा गया था,
बस कुछ साँसे चल रही थी
जिंदा होकर भी,
मैं तड़प तड़प कर मर रही थी
मैं कुछ इस तरह बिखर रही थी
साँसे कुछ थी दबी सी कुछ चल रही थी !!
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