करे तो करे क्या ?
यहां सरकार क्या भगवान
खुद नहीं सुनता किसान की
कभी बेमौसम बारिश ,
कभी तूफान , तो कभी सूखा
ना प्रकृति ही साथ है
ना किस्मत साथ देती ना वक़्त
ना मेहनत का फल मिलता
ना लागत के दाम 😐
करे तो करे क्या ??-
Standing barefoot and
Watching those cracks
On dry land he said ,
"Kiss my feet million times"
But I'll never forget that
You swallowed my father .
//Farmer Suicide .-
क्या सिख क्या ईसाई
मैंने तो बनाया सिर्फ इंसान
फर्क करते करते खुद लड़ते रहो
क्या हिन्दू क्या मुसलमान
पानी भी नही पूछते हो उसे
जिसका दर्जा है बराबर भगवान
सबका पेट भरने वाला
भूखा बैठा है वही किसान
रास्ते पर जाती लड़की को छेड़ते हो
क्यों बन जाते हो हैवान
आज भी याद करता हूँ वो दिन
जब बनाया था मैंने यह नन्हा जहाँ
//काश मैं अंधा होता - भगवान-
ना नेता , ना अभिनेता
मेरे देश की असली पहचान
मेरे किसान और जवान से है ।
जिसे फिक्र ना धूप की ना सर्दी की
अपनी मेहनत से जो पूरे देश का अन्न से पेट भरता है
पर ना जाने कभी कभी वो खुद भूखा सोता है ।
पूरा देश असल मैं किसान का कर्जदार है ।
पर ना जाने उसको ही क्यू कर्ज चुकाना पड़ता है।
जो अपनी मेहनत से अपनी मिट्टी का भी कर्ज चुकाता हैं
वो अपने देश का किसान कहलाता है ।
(( Happy farmers day ))-
मुट्ठी भर दाना किसान
संसद में डाल दे
वर्षों से वो ज़मीन बड़ी
बंजर पड़ी हुई है
टिड्डियों की बिसात
क्या है उनके आगे
नस्ल वो जो संसद में
दशकों से जमी हुई है
-
तुम हो तभी तो हम है
जिस्म बिना जान कहां
किसानों बिना अनाज कहां
हर दर्द इनके दफन हो जाते हैं
जब अनाज बनकर खेतों में लहलहाते हैं-
I Am The Son Of A Farmer,
I Believe In Karma More Than Luck ... ✨-
"किसान था वो, जिन्दगी से लड़ ना सका "
किसान था वो, जिन्दगी से लड़ ना सका l
जरा सा कर्ज लिया था उसने, वो भी चुका ना सका। कर्जदारौ की गाली और मार खाता रहा , हाथ जोड़कर विनती करता रहा ।
फसले भी सारी बरबाद हो गयी, और बादल भी समय पर बरस ना सके ।
सरकारी वादे भी फैल हो गये, खुदा भी उसकी मदद् कर ना सका ।
परिवार को दो वक़्त कि रोटी खिला ना सका, किसान था वो, जिन्दगी से लड़ ना सका ।
अखबार में ये खबर अब आम हो गई, मौत का ये सिलसिला रुख ना सका।
आरोप प्रत्यारोप का दोर चलता रहा l
लेकिन जो मर गया वो तो किसान था, जिन्दगी से लड़ ना सका ।-
शायद
मज़लूमों की एकमत मर्ज़ी
बेमानी है जम्हूरियत में शायद।
हुक़ूमत की मर्ज़ी से नया
कृषि कानून लाया जा रहा है।
लोकतंत्र के मंदिर पर
सर झुकाना था ग़लत शायद।
इसे सुधारा जा रहा है
संसद भवन नया बनाया जा रहा है।-
मै खुद पर काबू रखता हूं,
जजबात नहीं समझते...
कुछ तो है जो चुप हूं,
इतनी सी बात नहीं समझते...
वो भूख को क्या समझेंगे?
खेत से कभी बादल नहीं देखा...
बरसात नहीं समझते,
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