Ashish Kushwah  
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Joined 6 September 2019


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9 SEP 2021 AT 10:57

जो भी मसअला है बैठकर हल करते है
दो-दो पेग मारते है, और घर चलते है

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18 JUL 2021 AT 10:05

जो हिज्र काटते हैं लोग
जिंदा लाश होते हैं लोग

यकीन नहीं इश्क में अब
धोखा दे ही जाते हैं लोग

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7 JUN 2021 AT 21:36

जैसे-जैसे तेरी यादों का असर कम होगा
यकीन मान में पहले से और बेहतर होगा

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2 FEB 2021 AT 8:21

लिहाफ़ ओढ़ते ही
जब कभी
उसका ख़्याल आता है
दिल धड़कता है
जोरो से
और अश्क छलक जाता है

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22 NOV 2020 AT 12:13

काबिलियत है गर, तो खुद को आजमाया कर
यू ना किस्मत के भरोसे बैठ जाया कर !!!

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8 SEP 2020 AT 21:12

परिंदो की परेशानी का लिहाज़ कौन करता है
जब बनानी हो सड़क तो पेड़ काटना पड़ता है

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6 SEP 2020 AT 8:01

ये आदत अच्छी है कि, सुबह जल्दी उठ जाता हूँ
बात ये भी है कि, हमे रातो को नींद नहीं आती

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15 AUG 2020 AT 17:29

चंद जुगनू , ये रात और तुम
हल्की बारिश, चाय और तुम

मंजिल दूर, ये राह और तुम
हाथों मे हाथ, बात और तुम

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19 JUL 2020 AT 8:08

उसके खत को जलाना भी जरूरी था
हिज्र के बाद सँभलना भी जरूरी था

ज़िस्म का ख़ून सूख ना जाये इसलिए
महफ़िल में शराब पीना भी जरूरी था

वक्त के साथ देखो दाढ़ी सफेद हो गई
अब तो निकाह करना भी जरूरी था

कब तलक उसके शहर से तोबा करेंगे
बच्चों की ख़ातिर कमाना भी जरूरी था

पूराने दरख़्त कि तरह हम बूढ़े हो चले
अब तो कब्र में लेट जाना भी जरूरी था

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2 JUL 2020 AT 8:56

चंद जुगनू पकड़कर हम मुतमइन हो गये
मानो जेब में रख लिया हो आफ़्ताब जैसे

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