दुनिया रुकावट देगी तू रफ़्तार बढ़ा,
छाँव में मत बैठ सूरज से आँख मिला ...-
क़िस्मत की राह मत देख तू मेहनत की बात कर,
जो खुद को बदल दे वही असली शुरुआत कर ...-
हसरतें बहुत थी मगर लकीरें रूठी रही,
हर दुआ बेअसर थी हर कोशिश टूटी रही ...-
मैं नदी हूँ मुझे सिर्फ़ बहना ही नहीं आता
सागर तक पहुँचने की ख़्वाहिश भी है
लेकिन रास्ते में
कभी चुपचाप तो कभी गरजते हुए
अपना रुख़ बदलती हूँ
कभी मिट्टी की गोदी में खेलती हूँ
कभी चट्टानों से टकरा कर बिखर जाती हूँ
रुकने का नाम नहीं
फिर भी हर मोड़ पर
नई दिशा ढूँढ़ने की ज़िद करती हूँ
जब मैं ख़ामोश होती हूँ
तो बस अपनी गहराई में डूबे सवालों को
समझने की कोशिश करती हूँ
पर जब मुझे ज़रूरत होती है
तो लहरों में भी तूफ़ान का जोश समेट लेती हूँ
कभी मेरी बहनें भी मेरे साथ बहती हैं
हम सभी एकसाथ चलकर
सागर तक पहुँचती हैं
पर हर नदी का अपना रास्ता होता है
जो उसे अपनी मंज़िल तक खुद ही ले जाता है-
तेरे नाम से ही अब साँस जुड़ गई है,
इश्क़ शायद नहीं तू ज़िंदगी बन गई है ...-
कदमों की थकान से हौसले नहीं थमते,
जो जलते हैं जुनून में वो आसमां भी नाप लेते ...-
ज़ेहन में ख़ामोशियों का एक शहर बसाया है,
लोग कहते हैं मैं बदला हूँ मैंने बस ख़ुद को छुपाया है ...-
मैं आज भी
तेरे जाने के बाद की सुबह में जागता हूँ
और तू
शायद अब भी
मेरे साथ बिताई आख़िरी शाम में ठहरी है
हम दोनों आगे बढ़े
मगर विपरीत दिशाओं में
एक ही क़दम पर
तू आगे गई
और मैं पीछे रह गया
कभी-कभी सोचता हूँ
क्या तुझे भी
वो ख़ामोशी याद है
जो हमने एक-दूसरे की आँखों में छोड़ी थी
कहने को बहुत कुछ था
पर जाने का वक़्त भी था-