दिमाग़🧠
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मैं कोई क़िताब नही जो समझ सकती हो,
ये मैं भी जानता हूँ, तुम बदल सकती हो।
ज़िन्दगी का सवेरा बनकर आज जो आयी हो,
तो कल शाम बनकर रातों में ढल सकती हो।
मैं कोई खेल नही,जो खेल सकती हो,
जी भर जाए तो कहीं भी छोड़ सकती हो।
ये मैं भी जनता हूँ तुझसे मेरा कोई मेल नही,
जो उम्रभर इस नादान इश्क़ को झेल सकती हो।
-Prashant saameer— % &दिल❤️
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कहूँ गर हाल-ए-दिल अपना,
जबतक चाहो इस दिल मे रह सकती हो।
इज़ाज़त जब मेरे दिल ने दे ही दिया है तुम्हे,
एहसासों के पन्नों पर अपना नाम छोड़ सकती हो।
तेरे होने की तफ्तीश ना होने देंगे औरों को,
मेरे इश्क़ पर इतना एतबार तो कर सकती हो।
बेचैनियाँ जब बढ़ने लगे,दिल मद्धम मद्धम सुस्त पड़ने लगे,
बहती हवा में खुशबू बनकर,मेरी इन साँसों में पनाह ले सकती हो।— % &-
30 JAN 2022 AT 0:07
6 MAR 2020 AT 21:31
दिल और दिमाग की जद्दोजहद का सबब
अक्सर तुम ही रहते हो,
यह वाकया काफी नहीं है तुम्हें
अपनी अहमियत जानने का।-
18 NOV 2018 AT 18:13
अब उन्हें सज़ा दें भी तो कैसे?
जहाँ ये दिमाग उनपर इलज़ाम लगाता है,
वहाँ ये कमबख्त दिल!
उनकी वकालत के लिए खड़ा हो जाता है..-
13 NOV 2017 AT 7:57
बेथक ये दिमाग मेरा, अनगिनत इल्ज़ाम लगा चुका है,
कि हारा ये दिल मेरा, भीगी रिहाई दे रहा है तुमको !!-
11 JUL 2021 AT 15:41
दिमाग कहता हैं इश्क़ ही बनता सबसे बड़ा गुनाह हैं
पर दिल कहता हैं उसकी मोहब्बत ही मेरी पनाह हैं
दिमाग़ जानता हैं मिलतीं नहीं मंज़िल उपर से कंटीले राह हैं
दिल कहता इसपे नंगे पाँव चलने की भी हमें नहीं परवाह हैं
दिमाग़ कहता कल तेरी बर्बादी बनेगी जो बनीं आज तेरी चाह हैं
दिल कहता मंजूर हैं क़ातिल निगाहें चाहें ये हमें करती तबाह हैं
दिल और दिमाग की गहरी कशमकश में
देखे ज़रा कौन करता हैं किसे अपने वश में
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