ابھی تو فتنے ہی برپا کئے ہیں عالم میں
اٹھائیں گے وہ قیامت کسی کو کیا معلوم
अभी तो फ़ित्ने ही बरपा किए हैं आलम में
उठाएँगे वो क़यामत किसी को क्या मालूम
داغ دہلوی | दाग़ देहलवी-
Wo Zamana Nazar Nahi Aata
Kuch Thikana Nazar Nahi Aata
Jaan Jaati Dikhayi Deti Hai
Unka Aana Nazar Nahi Aata-
इश्क़ में लूटे हुए हम क्या करे
हो गया सो हो गया ग़म क्या करे
है सुहानी ये फ़िज़ा पर क्या करे
तुम नही हो तो ये मौसम क्या करे
रोने की आदत नही लेकिन कभी
आँखे हो जाती है यूँ नम क्या करे
है बहुत ज़िद्दी न भर पाएंगे ये
ज़ख्म ऐसे है तो मरहम क्या करे
है बहुत मुश्किल सफ़र मेरा मगर
हमसफ़र तू हो तो फ़िर ग़म क्या करे
दिल ही जब पत्थर हुआ सब का यहाँ
इश्क़ से लबरेज़ आलम क्या करे
ख़ून है बिखरा हुआ हर सिम्त ये
जीत का ऊँचा ये परचम क्या करे
बेवफ़ा का ज़िक्र करके फ़ैज़ अब
और दिल को यार बरहम क्या करे-
Tumhare khat mein
Ek naya Salam kis ka tha,
Na tha Raqib wo
Akhir wo naam kis ka tha?
-Dagh Delvi
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ḳhatir se ya Lihaz se main maan to gaya...
Jhooti kasam se aap ka Imaan to gaya.
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आपकी सादा दिली ख़ुद आपकी तौहीन है,
हुस्न वालों को ज़रा मगरूर होना चाहिए!!
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दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे,
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे।
dil de to is mizāj kā parvardigār de,
jo rañj kī ghaḌī bhī ḳhushī se guzār de.
- Dagh Dehlvi-
हाथ रख कर जो वो पूछे दिल_ए_बेताब का हाल,
हो भी आराम तो कह दूं मुझे आराम नहीं!!-