Faiz Ansari l فیض انصاری   (faiz)
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हाल-ए-दिल लिखता हूँ, कभी इश्क़ तो कभी दर्द लिखता हूँ...
Joined 19 February 2019


हाल-ए-दिल लिखता हूँ, कभी इश्क़ तो कभी दर्द लिखता हूँ...
Joined 19 February 2019

तेरी चाहत छुपाये बैठा हूँ,
सीने से दर्द लगाये बैठा हूँ,
सदियाँ गुज़र गई इंतेज़ार में,
तेरी यादों में वक़्त भुलाये बैठा हूँ।

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ढूँढते रहे ता-उम्र मंज़िले अपनी,
कुछ क़दमों के निशा और,
अधूरे ख़्वाब नज़र आते हैं।

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निभा रहे हैं सब बख़ूबी से अपने क़िरदार को,
हर शख़्स यहाँ एक कहानी का क़िरदार लगता है…

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ज़िंदगी के कुछ पनों को कोरा ही रहने दिया,
सायद उनपे कुछ न लिखना ही वाज़िब था।

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एक साँस सबके हिस्से से
हर पल घट जाती है,
कोई जी लेता है ज़िंदगी
किसी की कट जाती है।

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बस एक लम्हा और फिर लम्हों की गुज़ारिश,
कुछ ऐसा असर हुआ तेरे मुलाक़ात का।

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हैं कितनी ख़ामोश ये राहें,
और मंज़िलें भी धुँधलीं सी हैं,
के हम सफ़र पे तो हैं,
मग़र सफ़र में नहीं ।

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ये बेरुख़ी तेरी जैसे मौसम पत्झड़ का,
के अब तो बहार आने का इंतेज़ार रहता है।

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ये ग़म-ए-दास्ताँ है इसे सुनेगा कौन,
तपती धूप में संग चलेगा कौन,
शामिल हैं सब खुसियों में, अए फ़ैज़
जो छलकेंगे आंसू तो देखेगा कौन ।

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कोई तो सुन लेता मेरी भी ग़म-ए-दास्ताँ,
जो भी मिला अपनी दास्ताँ सुना गया ।

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