दिन निकलता है और गुज़रता है
और फिर रात ढलती रहती
ज़िन्दगी ख़त्म हो गई कब से
अब फ़क़त साँस चलती रहती है
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जो भी थी ख़ुशियाँ मेरी आँखों का पानी बन गई
ज़िंदगी मेरी उदासी की कहानी बन गई-
किसको सुनाए हाल हम अपना पता नहीं
कैसे कटेगी ज़िंदगी तन्हा पता नहीं
इक भीड़ इर्दगिर्द है अपना कोई नहीं
क्या हो गया वो आश्ना चेहरा पता नहीं-
नज़र से कुछ पिला मुझे तू फ़ैज़याब कर मुझे
मैं बुझ गया जला मुझे फिर आफ़ताब कर मुझे
तेरी नज़र के हर हुनर की है ख़बर मुझे मगर
दिखा नया हुनर कोई तू ला जवाब कर मुझे
तू नूर की क़िताब है, है लफ़्ज़ लफ़्ज़ नूर तू
तू अपने लफ़्ज़ दे के अपनी सी किताब कर मुझे
हक़ीक़तों में यूँ भी जी नहीं लगे मेरा अभी
बसा ले अपनी आँखों मे तू ख़्वाब ख़्वाब कर मुझे
लगा ली आदतें बुरी ये ताने सुन रहा हूँ मैं
ये बात सच है गर तो फिर तू और ख़राब कर मुझे-
ग़म ए ज़िंदगी को लेकर किसी दिन चलेंगे मक़तल
यहीं एक ख़्वाब लेकर रहे जीते हम मुसलसल-
गुज़रा जो सानेहा तो ख़बर आँख को न दी
हम रोए खुलके आँख को रोने नही दिया-
मुझे अंजाम मालूम है कहानी का क्या होना है
मगर फिर भी मुझे आखिर के पन्ने देखने होंगे-
कुछ मिला ही नहीं दुआ कर के
लौट आये ख़ुदा ख़ुदा कर के
पूछता है कि दर्द होता है..?
जान मुझसे मिरी जुदा कर के
बेरुखी उसकी माफ़ कर दी थी
क्यों खफा हो गया खफा कर के
कब से मैं ढूंढ रहा हूँ उसको
छुप गयी है ख़ुशी सदा कर के
साँस लेना लगे ज़हर सा है
वो गयी अपनी सी हवा कर के
जो कभी भी कही न रोया था
रो दिया इश्क़ की ख़ता कर के
बेरुखी सब की और रुस्वाई
ये मिला मुझको है भला कर के
रोग ये लाइलाज हो बैठा
देख ली फैज़ सब दवा कर के-
जो नहीं है उसी पे मरता है
दिल यूँ ही इन्तिज़ार करता है
इस क़दर इश्क़ है कि पूछो मत
नाम से उसके ही महकता है
मैं अँधेरे से अब न डरता हु
नूर मुझमे तिरा चमकता है
जो अँधेरे से दोस्ती कर ले
वो सितारा फकत चमकता है
हर घडी इश्क़ से उलझता है
फैज़ कुछ भी नहीं समझता है-