नहीं पता कि फिर कहां मुलाकात होगी...
सुबह से शाम, शाम से रात होगी,
पर न जाने किसके साथ होगी..
यारों के साथ बिताया हर पल याद आएगा,
नम आंखों से सारा मंज़र नज़र आएगा.. कि..
कैसे साथ के इतने दिन गुज़र गए,
क्या-क्या किये और बिछड़ गए..
टीचर की डांट, सीनियर की फटकार,
असाइनमेंट की टेंशन और दोस्तों का प्यार..
सबके बीच रहकर जो सुकून नसीब होता था,
वो फिर मिले न मिले..
साथ में होते तो सुलझा लेते थे हर उलझन,
फिर यही किस्मत मिले न मिले..
बड़ा ही सच्चा और अच्छा सफर तय किया है,
साथ बिताया हर पल दिल के एक कोने में महफूज़ किया है..
गिले शिकवे को मिटा कर आगे बढ़ते रहना यारों..
और ज़िन्दगी के किसी न किसी मोड़ पर मिलते रहना यारों...
नहीं पता कि फिर कहां मुलाकात होगी...
सुबह से शाम, शाम से रात होगी,
पर न जाने किसके साथ होगी..
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