ना जाने क्यों वो मुझसे मुस्कुरा के मिलती हैं
अंदर के सारे गम छुपा के मिलती हैं
जानती हैं आँखें सच बोलती हैं
शायद इसीलिए वो आँखें झुका के मिलती हैं-
धूप ढलने तक ख़ुद को सुलाये रखा,
आंच महसूस होने तक दिया जलाये रखा
और सब तो बेबाक गुलाबों को तोड़ने में मगरूर थे
इक मैं था अपने बिस्तर को बबूलों से सजाये रखा..
थी इन्तहां उस इंतज़ार की पहरेदारी बिल्कुल
जाम पिला - पिला कर ख़ुद को जगाये रखा..
आरिज़ की लाली मिटा दी, सुर्ख होठ सूखा दिए
उस तन्हाई में वास्तविक मैं से ख़ुद को मिलाये रखा..
है हर रोज़ दिखती हमें चिता की सच्चाई, उसकी आग में
ज़मी पर पैर, ताउम्र ख़ुद को राख में मिलाए रखा..
और जान पर आई तो हमें गिरा दिया बेदिमाग उसने 'नेहा'
इक मैं था कि एक तिनके के सहारे ख़ुद को बचाये रखा..-
यादों की पिछले गली से हर रोज़ एक याद निकलता हूं।
नींदों के सपनों से छुपा जिसे हर वक़्त समेटे रखता हूं।।
अधूरे उसी पन्नों पे आज भी वो नाम संजोए रहता हूं।
के यादों के पिछले कमरे में अब भी उसे छुपाए बैठा हूं।।-
युह पलके झुकाए बैठे हो लगता है कोई राज़ छिपाए बैठें हो,
होठों की यह प्यारी हसी हाथों से जो छिपाए बैठें हो।-
आजकल बड़े खुश से रहने लगे हैं हम
ना जाने कैसी ये बेवफाई है
हाल-ए-दिल से पूछो इसके पीछे
क्या राज छुपाए है✍️✍️-
देखो तो क्या नसीब पाया है,
हमने अपना हर अज़ीज़ गंवाया है,
न पूछो कि ये दुःख कैसे छिपाया है,
बड़ी मुश्किल ये दिल इतना ही लिख पाया है।-
ना ही आंसू बहाएं ,
ना ही हम हम मुस्कुराएं ,
बस चुप चाप हमने उनसे अपने दर्द छुपाएं....-
दिल में छुपाये रखते है तूम्हे कि कोई चुरा ना ले जाये हमसे,
आँखोंसे बयान करते है बातें कि कोई गलती ना हो जाये लफ्जोंसे...
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मुशकुराये😊 है हमेशा छुपाये हैं गम😔,
तुम्हें वक्त बताएगा कोन है हम.!-
इत्तेफाक कुछ ऐसा था...
वो शख्स मेरे करीब बैठा था...
नजरे चुराने की कोशिश थी...
शायद कुछ छुपाये बैठा था....
टटोला मैं ने उसके दिल को...
राज़ कई दफनाये बैठा था...
आँखों में नमी रख. कर...
होंठों पे मुस्कान लिए बैठा था...
बोला अाज सब कुछ हार कर आया हूँ...
इश्क़ केे बाज़ार में खुद को मार कर आया हूँ...
बहुत उम्मीदें थी मुझे उस बेवफा से...
जिसको अाज छोड़ कर आया हूँ...
कोई पूछे तो मेरे दिल से, ये क्या करके आया हूँ...
किसी को खबर ही नहीं, मैं अाज खुद को मार कर आया हूँ....-