अंकित मिश्रा   (the_redink_ (बेवफ़ा))
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Joined 2 April 2019


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किसी और के बाहों में हो कर
तमन्ना तुम्हारी करता हूं।
इससे ज्यादा वफा फरस्त बेवफ़ा
मैं और क्या होता।।

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जब तक सियाही में दर्द था,
कलम चलती रही।

रक्त का बहाव क्या रुका,
पन्नो ने दम तोड दी।।

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इस दिल पर अब कब्ज़ा किसी और का हैं,
प्रयास ना करे, मेरी जिंदगी का फौजदार कोई और हैं।।

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अंधेरे को चिरते हुए..!!

लेटा हूँ हसरतों के बिस्तर पर..!
इंतज़ार की चादर ओडे हुए..!!

सुकून की इस उम्मीदों पर..!
आते होगे तुम यादों का सागर लिए हुए..!!

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सारा दर्द पन्नो में समेट कुछ
ऐसा किया इस बारिश में।
दर्द गला दिए सारे और बस
बेजान जिंदगी बची मुझमें।।

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गालिब के शेरों से मायेने है तुम्हारे,
के फैज़ के नज्मों से चमक हैं तुम्हारे।

मुझसा अनपढ़ तुम्हे देख लिखना सीख रहा,
के मीर के शब्दों से जज़्बात हैं तुम्हारे।।

मासूमियत के हर अदाकारी से ढले तुम,
गजलों के किताब से हर अदाकारी है तुम्हारे।

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भोर प्रहर, शांत मन में प्रकृति की महक,
पंछियों की चहचाहाट में तेरी इक झलक।
अज्ञात सी जगह पर, अद्भुत तेरा मिलन अवसर,
छोटा सा संवाद तुमसे, जिसमे मिलाप सा भनक।।
कितना सुहावन वो मिलाप और प्रेम का वो सफर,
प्रकृति, पंछी, वो सुबह की ठंडी धूप बने जिसके जनक।।

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कुछ यूं सताती हैं तेरी यादें मुझे,
आराम में काम, काम में आराम दे देती मुझे।

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मैं हर बात अधूरी करता हूं,
हर नज़्म अधूरी लिखता हूं।
खुद से ही इतना बिखर गया,
के चंद शब्द ही मैं टटोलता हूं।।

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मैं अपने अंत का नहीं सोचता कभी,
इतनों का दिल तोड़ा के बुरा ही होगा मालूम हैं।
अब जहा 100 वाहा 101 भी सही,
इतनों का सजा सहूंगा तो 1 और झेल लेंगे मालूम हैं।।
प्यार, परिवार या दोस्ती किसी में ना बदला,
तो अब 20 साल बाद तुम क्या बदलोगे मुझे मालूम हैं।।
अरे जाओ मुझे ना सिखाओ जीना कैसे हैं,
बुराई से तो उसी से सही खुशियां कैसे मनानी हैं मुझे मालूम हैं।।

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