नूर-ए-बदन कि चाहत अब आम सी है।
बाजार-ए-इश्क में रूह का क्या काम ही है।-
कर दूँ इज़हार-ए-मोहब्बत खतों में या सरेआम आ जाऊं,
आओ मिलो कभी फुर्सत में बैठ तुम्हारे संग लखनऊ की शाम हो जाऊँ.-
मुझे हमेशा,
उससे,
कुछ ज्यादा की,
चाहत रही !
जैसे,
चाय के साथ,
हमेशा,
बिस्किट की,
रहती है !!-
ना जाने ये कैसी आदत है मुझे
वो नहीं फिर भी उसकी चाहत है मुझे
उसके हर लहजे की आज भी खबर है
पता नहीं ये किस दर्जे की मोहब्बत है मुझे
कुछ बाकी नहीं जिसके काबिल ना हूँ मैं
मालूम नहीं फिर क्यूँ उसकी जरूरत है मुझे
बातें कुछ और हो तो वक्त नहीं थमता
बस यूँ ही जिक्र हो उसका तो फुर्सत है मुझे
वो भुला चुका है सारे रब्त मुझसे
फिर भी बस एक उसे पाने की शिद्दत है मुझे
"शायरा" नहीं रोक सकी उसे दूर होने से
उसकी यादें करीब है इस बात राहत है मुझे-
क्या कहूँ अब दर्द-ए-दिल
ज़िया नही जा रहा
उसकी याद में इन ग़म के
अश्कों को पिया नही जा रहा
दुआ कर वो भी मोहब्बत
कर ले हमसे ये ग़ालिब
यूँ उससे एकतरफा इश्क़
किया नही जा रहा
-
जिसको आप पसंद करते हो
अगर उसकी याद भी आती है तो
चेहरे पर मुस्कान और दिल को सुकून मिलता है-
ChAHT!!
हाँ !वो "CHAHT" तो
"CHAHT" ही
बनकर रह गयी,
उस "CHAHT" की
"CHAHT" बाकी
"CHAHTO" के आगे
कही गुना छोटी रह गयी !!-
Chahte to sab hai.........
Pr teri chaht jaisi, unme koi....baat nahi !!-
तेरी चाहतों में इस कदर खोने लगे हैं।
धीरे धीरे तेरा होने लगे है।।-