राह चलते हुए, हर बार दुआ करता था,
जान निकली भी तो, बस एक निवाले के लिए ।-
शहरी चमक -दमक के अंधेरे कोनों में,
गंदगी के साथ पसरे जीवन के ढेर ।
अलसुबह से नारकीय जीवन जीते,
चौराहों पर जिंदगी का बाजार लगाते ।
बचपन के हाथों में कचरे की थैलियां,
नाकारी के बोझ तले बूढ़ी जवानी,
कोख में स्याह भविष्य लिए हाथ
पसारती ममता । कभी बेचे गये,
कभी लूटे गए,
कभी फुटपाथों पर कुचले गए ।
हमारे फिक्र की इंतिहा मुंह फेरने
या चंद सिक्के देकर
पीछा छुड़ाने भर की है।
इंसान बनने की कोशिश
शेखर अब इंसान से नहीं होती ।।
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Begging neither suits me nor it's the actual solution anymore. The real solution is, "Sadda Haq Aithe Rakh".
Not settling down for less than what I actually deserves in real is what makes me the opposite of a beggar i.e.,
A for Achiever.-
तुम महलों में तन्हा अकेली थी,
मैं भिखारी करीब आ रहा था,
शहर की रानी को मिलने देखो,
गांव का गरीब आ रहा था।
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किसी ने कुछ मांगा हमसे
मगर हम दे नही पाए।
मांगने वाला भी कुछ ,
सोचकर आया होगा,
हमने क्यों? उसे नाउम्मीद
लौटा दिया।
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जिंदगी क्या है,
जान जाओगे,
कभी किसी भिखारी के कटोरे
में फेंके "सिक्कों" को गिन लेना ।
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काश भूख को भी मालूम होती
धर्म और मज़हब की बातें
कमबख्त न लाती यूँ कभी ग़ैरों
की चौखट तक....-
जो है भूखे पेट और फटे पुराने वेश...!!
रोड किनारे फुटपाथ ही है जिसकी सोने की सेज,
क्यूँ पड़ा है ऐसे ये भी तो है उसका ही देश...!!
क्यूँ मूक बन रही हैं सरकारे उसको देख
कोई तो करो उसकी देख रेख
बदल तो उस भिखारी का वेश...!!
-©Saurabh Yadav...✍️
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बहुत कुछ समेटे गुज़रती हैं रूहें ,अपने सुकून का कोई कोना ढूँढ़ती शहरों की इन तंग गलियों से...
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