Mukesh Raj   (✍️Mukesh Raj)
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Joined 9 November 2018


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Joined 9 November 2018
4 DEC 2020 AT 3:51

आज मेरे अश्क का हर दरिया उसे सदाक़त लगता है,
तो क्या हुआ मेरी मौजूदगी कभी उसे आफ़त लगता है,

मेरा कमज़ोर ईश्क़ तुझे पाने को अब काबिल नही रहा,
अब मुक़म्मले मोहब्बत के जुम्बिश को बहुत ताकत लगता है,

मेरा नि-जोर नब्ज़ अमूमन ठहर जाने को ज़िद करता है,
बीमार हक़ीम मेरे बस्ती के मुझसे ज्यादा नाताकत लगता है,

मुमकिन है मेरे ग़ुनाह का पैरवी उसे फिर जीत दिला दे,
मगर इन्साफ को मेरे इस जहान में अब अदालत लगता है,

जो कैद हो तुम तो अहले वतन पे ज़ां क़ुर्बान तुम्हारी,
रंभेड़ियोँ के सिरकलम से पहले कहाँ जमानत लगता है,

बड़ी मुश्किल से समझ में आते है ये लखनऊ वाले,
दिलों के फासलों में लबों पे आदाब का आदत लगता है,

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28 OCT 2020 AT 1:44

बाढ़(बिहार)
Not political

तीव्र धाराएँ उमड़ उठी है
बेसक इरादें नापाक हैं
बेघर करने को मचल रही
लगाए बैठे गात है।

मंज़र तबाही का देख रहा
पूछता किसका रोष है
नेताओं का तो पूछो मत
कहते, सब पानी का दोष है।

माना परिस्थितियां विकट घनघोर है
और बेघर होने की होड़ है
रुको, गलती से भी मत बोल देना
सरकार भी तो चोर है।

मानवता के नाते तुम
एक संदेश जरुर लाना
उम्मीद नहीं है तुमसे, फिर भी
दिला सकोगे महज़ थोड़ा खाना?

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26 OCT 2020 AT 18:04

मोहब्बतें बाद वो बोली वो मेरी कॉम की नहीं,

गुज़रते थे जो ज़ाफरां वो मेरी ज़ोम ही नहीं,

तो क्या हुआ ऐ ताबगिल वो मेरी जात की नहीं,

मुझे वफ़ा से बैर है ये बात आज की नहीं।

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26 OCT 2020 AT 15:01

मैं लिखूँगा तुम्हारे बारे में और इतना लिखूँगा

की पढ़ने वाले भी तुमसे मोहब्बत करेंगे,

की तू चले तो कहकशां सी रहगुज़र लगे

जो सजे तो आईना हया करेंगे।

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25 OCT 2020 AT 17:25

बता हमरोज मेरे ग़ुनाह का फ़र्दा क्या है,

गिरेबां झांक ली हमने की मेरा दर्ज़ा क्या है,

खर्चें जो लम्हें तूने अपने रक़ीब की बाँहों में,

बता देना किस्तों में मेरी मोहब्बत का कर्जा क्या है।

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24 OCT 2020 AT 20:31

-चढ़ गए-

जमीं पर नहीं रहा अब कुछ भी,
सभी आसमान चढ़ गए
पॉंव हो या पूँछ परवान चढ़ गए।

गरीबों का नहीं रहा अब कुछ भी,
सभी शमशान चढ़ गए
दौलत हो या जुर्म हुक्मरान चढ़ गए।

ख्वाईश नहीं रही अब कुछ भी,
सभी कफ़न चढ़ गए
रईसी हो या फ़कीरी भगवान चढ़ गए।

नशा नहीं रहा अब कुछ भी,
सभी शाम चढ़ गए
जाम हो या शूली सरेआम चढ़ गए!
✍️ मुकेश राज

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24 OCT 2020 AT 10:36

-जो गीदड़ भवकी की बू भी आए
तो नियत से रवानी नोंच लूँ,

जो आग उठी है सीने में
तो धधकती लॉव से भी पानी नोंच लूँ।

उनकी यादों के आए दो पल भी न हुए
फिर भी वो कहानी बेजूबानी नोंच लूँ,

हम मर भी जाएं तो हमें ग़म नहीं
मैं जिंदा होके जिंदगी से जवानी नोंच लूँ।...

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6 AUG 2020 AT 10:06

Thanks Alex ❤️

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1 AUG 2020 AT 0:06

जिस्म एक के चेहरे अनेक होते हैं,

वो मेरी मासूका होके भी हर किसी पे दिलफेक होते हैं,

तो सुन ले, मैं भी ईश्क़-ए-इंतक़ाम बड़ी प्यार से लूँगा,

मैं भी तेरी तरह हर किसी से प्यार कर लूँगा।

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30 MAY 2020 AT 23:59

हम बारिस को बारिस ना कहें तो क्या कहें,

तेरे ईश्क़ में भींगे बरसों जो हो गए।

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