वो हमें ग़ैरों से भी ज़्यादा ग़ैर समझते हैं शायद,
और एक हमारा दिल है कि उनसे ज़्यादा अपना
इसे कोई लगता ही नही !-
हमें परायों से दिल लगाने की आदत तो नहीं,
पर अपना किसको बनाएँ इसकी समझ भी नहीं..-
ये किस मोड़ पर आ गयी ज़िन्दगी,
जहाँ अपना--- अपना लगता नहीं,
पराया -----पराया दिखता नहीं------
यूं गुमसुम ना बैठो
कोई बात सुना दो
नही हंसा सकते तो
जी भर के रूला लो-
ग़ालिबन तू मेरा ख़्वाब ही हैं फिर भी हम
कोई क़सर न छोड़ेंगे तुझे अपना बनाने में-
पहचान हो जाए सो मिलना-मिलाना होता है,
पराए को परखकर दिल लगाना होता है।
दिल जो लग जाए तो अपना बनाना होता है,
लब तो झूठ कह भी दे आंखें तो सच कहती हैं,
बस आंखों की भाषा से पढ़ना-पढ़ाना होता है।
किसी को अपनाने में ज्यादा समझ तो नहीं लगती,
खुद से धीरे-धीरे दिल के सारे राज खुलने लगते हैं,
बात समझ आ जाए बस तब तक आजमाना होता है।
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"एक बार 'Zindagi,में धोखा खाने के बाद ही
पता चलता है अपना कौन पराए कौन!!-
Aankhe jra num hai,
Dekh rahi hai aash ki koi apna puche,
Tumhe aakhir kya gum hai-
जिनको अपना मानके सारे जमानेसे लढा मै
दिलमे उनके देखो कितना मलाल निकला है-
दिल पे रखकर हाथ अपनेपन का एहसास देती हो,
बनाकर दीवाना हमें अपना बना लेती हो...-