जिसके जैसे भाव हैं,करता वैसा कर्म।
कर्म रचें फिर भाग्य को,जीवन का ये मर्म।।-
अधिकांश भारतीय गृहणियों का
हर कर्म--- पूजा हो जाता है ।
पूजा -----कर्म बन जाती है।
मैं--- भगवान को स्नान कराते समय---- शिवमअअअअ गैस बन्द कर देना बेटा----
आरती करते समय-----मनु दूध वाला आवाज लगा रहा है, दूध ले आओ जरा----
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व्हाट्सएप पर मुझे वो ब्लॉक कर ,अनब्लॉक करती है,
मेरे दम तोड़ते रिश्ते में श्वासों की सरगम बज उठती है-
वाह रे समाज---स्त्रियों के लिये जेठ भाई समान,देवर बेटेऔर ननद बहन समान।
पुरुषों के लिए साली आधी घरवाली,जिठ सास के मायने हास परिहास व उपहास।
पूरी व्यवस्था में हो पोल है तभी तो फट रहा अब रिश्तों का ढोल है।
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दाम और नाम कमाने के लिये रंगमंच पर मेहनत करने वाली स्त्रियों को उनके सर्वोत्तम के लिए पुरस्कृत किया जाता है परंतु परिवार रूपी रंगमंच पर निस्वार्थ कमरतोड़ कार्य करने वाली स्त्रियों के हिस्से पुरस्कार नही बस एक सवाल आता है--- -----आखिर तुम पड़े -पड़े करती ही क्या हो???????
या---- किया ही क्या है तुमने आज तक------
काश ये सवाल समय रहते समाप्त हो जाते तो समाज की, पति- पत्नी के रिश्तों की यूँ बेकद्री न होती जो आज देखने ,पढ़ने व सुनने को मिल रही है।-
जाने कब किस पल थमे,साँसों का संगीत।
हँसी खुशी से कीजिये,अपना आज व्यतीत।।-
नारी को बतला रहे, लोग यहाँ यमराज।
तथाकथित है डरा हुआ, सभ्य पुरूष समाज।।
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