तहरे भरोसे हम बानी ऐ बाबा,
डूबे चाहे पार लगे नाओ इ हमार...-
Official FB page: alifecounselor
Insta... read more
तेरी रज़ा मे मेरी रज़ा को मैने मिलाया है जबसे,
ऐ मालिक मुझे जीना, रास आया है तबसे।।-
अफ़सोस कर कल का बीते न रोने में मज़ा आता है,
क़तरा-क़तरा लम्हे खुशी के संजोने में मज़ा आता है...
ज़िंदगी लिखूँ, मोहब्बत लिखूँ या फ़ल्सफ़ा कोई,
दिल से निकले अहसासों को पिरोने में मज़ा आता है...
जो लिख दिया मेरी कहानी है, ऐसा नही ज़रूरी,
ख़यालातों को जज़्बातों से भिंगोने में मज़ा आता है...
नदी सी हूँ मैं और तुमको समुंदर है मान लिया,
तुम्हारी गहराई में खुद को डुबोने में मज़ा आता है...
देखा तुम्हे तो कोई मुझसा नज़र आने लगा मुझे,
"मेरे अहसासों" को अब तुम्हारा होने में मज़ा आता है...-
कृष्ण कृष्ण कृष्ण जपती रुकमणी थी,
लाज रक्खी थी कृष्ण ने उसके इश्क़ की...
हर किसी को कहाँ रास आती है ये मोहब्बत?
समझ नही सभी में यहाँ समर्पण रूपी प्रेम की...
सोचते हैं, तौलते हैं, परख़ते हैं दुनिया से फ़िर,
मन पर बाँध पट्टी बात करते हैं सब प्यार की...
-
आपका हर आँसू अपनी आँखों में ले लूँगी,
अपनी हर एक हँसी आपके लबों पर बिख़ेर दूँगी,
बस इक बार जो मुझे अपना हमदर्द बना लो,
मर जाउँगी पर आपको ख़ोने नही दूँगी !!!
-Amrita
-
चक्र क्या है?
यह ग्रंथियों एवं उपग्रंथीयों का एक समुच्चय है, तथा इन ग्रंथियों एवं उपग्रंथियों की अवस्थिति विभिन्न जानवरों में अलग-अलग होती है। मनुष्यों में चक्रों की स्थिति इड़ा, पिंगला एवं सुष्मना (मानसाध्यात्मिक प्रवाही मार्ग) के प्रतिच्छेदी बिन्दुओं (त्रिमिलन बिन्दुओं) पर है। मानव मन में बहुत से विचार लगातार प्रकट एवं विलुप्त होते रहते हैं। इन मानसिक घटनाओं के पीछे वृत्तियाँ ही मूल मे हैं जो प्रारंभिक रूप से मनुष्यों के जन्मजात संस्कारों (मानसिक प्रतिक्रियात्मक संवेगों) के साथ जुड़ी हुई है। वृत्तियाँ किसी के जन्मजात संस्कारों के अनुसार निर्मित हुई हैं। इन वृत्तियों की अभिव्यक्ति एवं नियंत्रण विभिन्न चक्रों के ऊपर निर्भर हैं।
योग-मनोविज्ञान
(श्री श्री आनंदमूर्ति)-
यदि आप देश, काल और पात्र के अनुसार मानवता को ध्यान मे रखते हुए अनिवार्य परिवर्तन (change) को स्वीकार नही करते हैं तो प्रकृति आपका भी डायनासोर से छिपकली वाला हाल कर ही देगी।
-
This world is not for cowards, only brave can enjoy the world, if love for him is awakened then no reason for fear.
(Shrii Prabhát Ranjana Sarkár)-
धर्म (मनुष्य धर्म) से बङा न कोई साथी है
और अधर्म से बङा न कोई दुश्मन !!!-