चौखट पर सियासत की जब अना दम तोड़ देती है।
तो ख़ाबों की उम्मीदें भी यँहा जीना छोड़ देती है।।
जो सवेरा है उम्मीदों का मजलूमों की नजरों में ।
उसकी नाउम्मीदी आवाम की हिम्मत तोड़ देती है।।-
"बुज़दिल न समझना हमने हसकर काँटी है उम्र तमाम.. तब भी न रोये जब मेरे जख्मों को कुरेद मजा़ ले रही थी आवाम.. "
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आवाम
क्या हुआ हे, आज की आवाम को।
इस सदी की एक झलक नहीं दिखती।
शायद कलयुग की छाया हे, उसी ने आवाम को ऐसा बनाया है।
ना दिल में प्यार हे,ना किसी के लिऐ इज्जत।
दिलो दिमाग से, वैसी दरिंदा बनाया है।
इन्सानियत के नाम पे, कलिक पोते जा रहे।
अपनी ज़मीनी हकीकत, भूलते जा रहे।
कहीं काले - गोरे का भेद चल रहा।
तो कहीं इन्सानियत को शर्मसार करते जा रहे।
प्रकृति की ना ही इज्जत, ना हमें मान है।
जब अपना विकट रूप दिकाए, अपनी जान की भिक मांग रहे।
अगर अब भी ना शंबले, तो इस सदी में जीना बेकार है।
आदि मानव ही अच्छे थे, आज की आवाम पे धिकार है।-
ये वतन हमारा वतन है।
नही जहाँ में कोई ,
इतना प्यारा वतन है।
।। जय हिंद।।-
टूटे प्याले के जाम को,
वो शराब कहती है।।
दो कौड़ी के चक्कर में,
हमें खराब कहती है।।
चलो मंजूर है शिकस्त,
तेरे इश्क में हमें।।
वरना पूछ आवाम भी,
हमें नवाब कहती है।।
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Ishq karo to ishq ko anzam tak le jao..
Ishq behad hansi hai jab aayam tak le jao..-
चेहरा वही रहेगा बस नाम बदलेगा
पता बदलने से कहाँ पैगा़म बदलेगा
हक़ चाहते हो तो फ़िर जंग लड़ो,
गुहार लगाने से कहाँ निज़ाम बदलेगा।
छाँव ढूँढते हो,परेशां धूप से हो,
दरख़त लगाओ तो ये इंतज़ाम बदलेगा।
यही रहेंगे हमेशा तख्तनशीं देखो,
हुक़्मरानों का सिर्फ़ नाम बदलेगा।
अब कोई किरदार नया तलाश करो,
तो इस कहानी का अंजाम बदलेगा।
पोशाख ज़रा क़ीमती पहन तो आओ,
देखना साक़ी तुम्हारा जाम बदलेगा।
दौर सौदेबाज़ी का है ये ख़याल रखो,
चेहरा देखकर हर बार ईनाम बदलेगा।
जगह इबादत की बदलने से यक़ीं जानो,
ना अल्लाह बदला है, ना राम बदलेगा।
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सियासत इस कदर आवाम पे अहसान करती है,,,
पहले आंखें छीन लेती है फिर चशमें दान करती है ।।।
अच्छे दिन Vs महंगाई-
नफरतें बिकती हैं सियासत के बाज़ार में मोहब्बत के ख़रीदार नहीं है
चुने रहनुमा अपना देखकर किरदार, अब ऐसी भी आवाम नहीं है
हम सब ने मिलकर मारा है उसे जिसे जम्हूरियत कहते हैं कोई इक शख्स इस जुर्म का गुनहगार नही है
वह तो बेशक खरीदना चाहता था, पर तुमने क्यों बेचा
तुम्हारे ईमान की फरोख़्त का कोई और तो ज़िम्मेदार नहीं है
नफरतें बिकती हैं सियासत के बाजार में मोहब्बत के ख़रीदार नहीं है-