कंठ है सूखे, अपने थे रूठे
वर्षों के भूखे, चप्पल भी हैं टूटे।
अब न जलती चूल्हे की आगी,
अब न आते खिलौने।
गरीबी की बाढ़ में बह गया है बचपन ,
रघुपति राघव कैसे लगाऊं तुम्हें भोग छप्पन।
हाथ में कटोरा न चैन न बसेरा ,
यही उनकी पहचान ...गरीब है उनका नाम ।
नहीं करनी मदद तो दुनिया क्यूँ करे टिप्पणी ,
जरा हाल तो देख अपना ओ नादान जिंदगी।।
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