नितलीय अथाह रत्नगर्भा आज कर रही तेजस्वी दिनकर से गंभीर चर्चा।
कण कण में है बिखलन,
रज्ज रज्ज में है विह्ललन ,
शोकाकुल संसार ,संकट में संतान
तरकीब दिखाएं हे पालनहार।
अंशुमाली, दिनकर बोलेः
लोलुप है वह प्राणी ,
कटु है जिनकी वाणी,
गगनचुंबी है उनका घमंड,
धर्म के नाम पर करते वो पाखंड।
व्यथित है गरीब पाने को दो जून की रोटी, तो अमीर की घट ना जाए एक भी सोने की गोटी।
हे संक्षिप्त पक्षपाती ,बड़ी निंदनीय है तेरी जाति ;
घुट रहा अपनी ही चारदीवारी में
पैसे की प्रतिस्पर्धा में प्रीत हुई जो पलायन ।
अधीर मत हो मन ,
अभी से पांव के छाले न देखो अभी यारों सफर की इब्तिदा है ।
अंधियारे से पूछो सामर्थ क्या है प्रकाश का ?
अस्थिरता से पूछो सामर्थ क्या है आत्मविश्वास का ?
इस वैश्विक उत्पात से खुद को बचाएं और
आत्मविश्वास का दीपक अनिवार्यतः जलाएं।।
-