रिशतेदारी में..
जरा नम रेह गये
दुनिया क नकशे कदमो से दूर
जरा हम रेह गये..
हमे तो लगा मोहब्बत बस्स हैं..
तेहजीब.. अदब.. नुमाईश.. इन मे..
जरा कम रेह गये..!-
पार्क में गया जब गर्मी से ऊबकर
वहाँ हवा अच्छी चली तो बैठ गया
अरसा हो गया था परियों के किस्से सुने
जब दादी कहानी सुनाने लगी तो वहाँ बैठ गया-
फूल हो तब भी टूट कर बिखरना मत,
इश्क में कभी हद से गुजरना मत ।।
तेरी जान पर तुझसे ज्यादा किसी
और का हक है इसलिए मरना मत।।-
ख्वाब बेहतर जिंदगी के ना दिखाओ हमे
मगर इतना बता दो तुम कहाँ तक साथ चलोगे.-
कि मुझमे अब बचा कुछ भी नही है
और इससे अच्छा कुछ भी नही है
मुहब्ब्त कुछ दिनों का साथ है बस
मुहब्ब्त में रखा कुछ भी नही है-
फूल हु तो टूटकर बिखर जाऊ क्या?
इश्क़ में अब हद से गुजर जाऊ क्या?
तुम्हे देखू, घर देखू, दोस्त देखू, जहां देखू।
कितने सितम उठाऊ मर जाऊ क्या?-
कर्ज उतर सकते हैं कुछ ! पर सब कर्ज एक जैसे नहीं होते ,,
कुछ तो नासूर बन जाते हैं ,,सब दर्द एक जैसे नहीं होते।।
वो एक लड़का बेवफा निकला, तो इसमें हमारा क्या कसूर,,
अरे उस लड़की को समझाओ,, कि सब मर्द एक जैसे नहीं होते।।-
✍...
किसे खबर है कि उम्र इस पर गौर करने में कट रही है,
कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस खुशी में लिपट रही है।
अजीब दुख है कि हम उसके होकर भी उसको छूने से डर रहे हैं,
अजीब दुख है हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही हैं।
मुझ जैसे पेड़ों के सूखने या सख्त होने से क्या किसी को,
ये बेल शायद किसी मुसीबत में है जो मुझसे लिपट रही है।
मैं उसको हर रोज सिर्फ यही एक झूठ सुनने को फोन करता हूं,
"सुनो, यहां कोई मस्सला है, तुम्हारी आवाज कट रही है"।
हम एक उम्र इसी गम में मुक्तला रहे थे वो शानहे ही नहीं थे जो पेश आ रहे थे,
इसीलिए तो हम दौड़ में हारे जब भाग सकते थे तब वैशाखियां बना रहे थे।
मैं घर में बैठ के पढ़ता रहा सफर की दुआ, उनके वास्ते जो मुझसे दूर जा रहे थें,
मैं जानता हूं तू उस वक्त भी नहीं था वहां जब हम तेरी मौजूदगी मना रहे थे।
'मग़रूर' तेरी बस्ती में उस रात क्या ठहरा उसको अपने पसंदीदा ख्वाब आ रहे थें,
बगैर पूछे ब्याहे गए थें हम दोनों 'कबूल' कहते हुए होंठ थर्थरा रहे थें!!
#हाफ़ी©-
तख्थ् पर रखी बक्से को देखा
तो याद आई रखी फूल गुलाब की
सोचा की मुरझा गए होंगे जैसे हो
रिश्ते ख्वाब के
धुँध अब जो बढ़ने लगे थे
नजदीकीयाँ भी कमने लगे थे
यादों को तो हमने संदूक में
जकर रखा था
लेकिन कैसे छुराते ताले पर लगे जंक
तकरार के
और जो रेत का महल तुम बनाने चले थे
लेहरे ने दी डूबा सारे अरमान साथ के
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कुछ खास हुनर तो अता करता मुझे मेरे मौला
हँसना- रोना, चलना-फिरना, लिखना- पढ़ना सब को आता हैं।-