रुक जाओ न
थोरि देर और बाते कर लो न , फिर चले जाना
आभी तो आऐ हो जाना जरूरी है क्या
जितने गिले शिकवे है उनको मिटा कर जाना जरूरी है क्या
आज सामने हूँ ईजहार कर दो
वक्त है भी नही भी , थोरा प्यार कर लो
ना जाने वक्त किस तरफ मोर लेले
ना जाने वो यादें जो हमने मिल कर बनाई थी
उनके सहारे जीना पर जाए , ना जाने, , ,,
कुछ तुम कहोगी, कुछ में कहूंगा
हाथो में हाथे डाले बैठा रहूँगा
तुम पूर्णिमा की चांद हो
मै अंधेरी रात हूँ
मेरे बगेर कैसे चमकोगी
थोरी देर और ठहर जाओ न
वादे निभाय थे हमने भी
आज ऐसे ठुकरा कर मत जाओ न
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चलो आज फिर अंधेरे से बात करते है
पिंजरे में बंद पक्षी को आज़ाद करते है
चलो आज फिर अंधेरे से बात करते है
आज फिर, सियाही को काग़ज़ पर बर्बाद करते है
सिखयातो को नज़्मो का आकार देते है
चलो आज फिर अंधेरे से बात करते है
एक रात जो गुजर गई
वो शाम जो ढल गई
उतरा ना तो बस नशा उसका
न भूली गई यादें उसकी
खतम हुआ एक कारवां
और ना पुरी हुई राह उसकी
काश वो लम्हा होता ही ना
ना होती उसकी यादें कहीं
ना हम बेगाने होते
और ना ही अंधेरे से बातें होती
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माँ मलहम लगा देती थी
जब मे गिर जाया करता था
बाप मलहम बन कर मेरे घाओ
भरा करता था
खुद टूटी चपल में सारा बाजार
नाप जाया करता था
मगर मुझे नए जूतों में दौराया करता था
यू तो अक्सर सारे दर्द छिपाये उसने
बात मुझ पर आई तो आँशु भी निकल आये उसके
घरवालो से दूर रुकी सुकी खा कर
घरवालो का ही सोच सताया करता था
वो पिता है कुछ भी ना जताया करता था
पुराने कपरों में त्योहार बिता दिया करता था
मगर मेरे लिए खिलौना का भंडार लगा दिया करता था
माँ शब्द में अगर ममता का अभाव है
तो पिता भी फ़र्ज़ का दूसरा नाम है
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Safar, dard bhaut deti hai
Magar tu sabr rakh aaur chala chal
Aaj dukho bhari sham h
kal khushiyon ka sawera hoga
Bas tu bas chala chl
Piche mur kabhi dekhna nii
Kya khoya usse kabhi sochna ni
Paane ko saara jahan baakii hai
Tu bas rukna ni
Manzile aasan ni
Par rakh hausla
Aaur chala chal
Lehre bhi badalti h apni rah
chattano sa chah bana to shi
Mushkile dbti ha, zamana jhukta h
Tu sah ko aapni rah bana to shi
Safar bhaut lamba hai
Tu sbr rakh bas chala chal, bas chala chl
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पनियों की झरझारा हट में
हावाओं की सरसारा हट में
सुबह की ताजगी में
रातों की नाराज़गी में
अक्सर उन्ही का ख्याल होता है
नदी के किनारों में ,
अक्सर शाम का ही राज होता है
ठंड में निकली रजाई में
गर्मी की वो चारपाई में
उन्ही का ख्याल होता है
और वह मूर कर ना देखे तो
खुदा से एक ही दर्खासत होता है
न करवाओ रूह ऐ मोबाह्हत्
की जिंदगी एक रवानी है
आज जो उनके हिस्से में थी
कल किसी और के हिस्सो में जानी है-
तख्थ् पर रखी बक्से को देखा
तो याद आई रखी फूल गुलाब की
सोचा की मुरझा गए होंगे जैसे हो
रिश्ते ख्वाब के
धुँध अब जो बढ़ने लगे थे
नजदीकीयाँ भी कमने लगे थे
यादों को तो हमने संदूक में
जकर रखा था
लेकिन कैसे छुराते ताले पर लगे जंक
तकरार के
और जो रेत का महल तुम बनाने चले थे
लेहरे ने दी डूबा सारे अरमान साथ के
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गौर से देखता हूँ इस धुंध में
नज़र आती है अश्क़ तुम्हारी
अब लोग इसे पागलपन कहे या आशिक़ी
मंज़ूर हमे दोनों है
आखिर दोनों ही हिस्सो में है ज़िक्र तुम्हारी
और मे तो कोयला का टुकरा हूँ
जलता था जलता हूँ और जलता रहूँगा
मगर मुकम्मल करूँगा मंजिल तुम्हारी
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आज दिल टूटे है
इश्क़ एक बार फिर यहाँ झूठे है
खोया हमने नही खोया उसने है
उनसे मोहब्बत करने वाले
आज इश्क़ के नाम से रूठे है
आज फिर तकिये कही भीगे है
और कही रात चैन से सोये है
ये कसुर किसका है
यह उलझन में हम फसे है
न हवस तेरे जिस्म की थी
न शौक तेरे लज्जत का था
बिनमतलबी से आदमी थे
तेरी सादगी पर मरते थे
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