जो मेले में हुए थे गुम भाइयों से मिला दे,,
गुमशुदा हैं ये अश्क बीनाईयों से मिला दे।।
नाम कमाने लगा तो सब दोस्त बिछड़ गए,,
ऐ दुनिया तू मुझे रुसवाइयों से मिला दे।।
मेरे सम्त रहती है भीड़ जमाने की हमेशा,,
काश ये भीड़ मुझे मेरे शैदाइयों से मिला दे।।
एक मतला और एक शेर अकेले हैं शायर,,
इन बिछड़े हुओं को रूबाइयों से मिला दे।।
लोगों से मिलता हूं तो दिल लगा बैठता हूं मैं,,
मैं तन्हा ही ठीक हूं मुझे तन्हाइयों से मिला दे।।-
सच में मां जैसी मोहब्बत किसी ने नहीं की।।- ललित पांडेय
तुमको एक बात बतानी थी ! तुम कहां हो,,
अरे वो एक नज्म सुनानी थी! तुम कहां हो !!
बूढ़े दरख्त सुनाते हैं जो मोहब्बतों के किस्से,,
ये तो हमारी ही कहानी थी! तुम कहां हो !!
तुम ये न सोचना कि मुझे मिलने का मन है,,
वो मेरे पास तेरी निशानी थी! तुम कहां हो!!
है मुझे मालूम कि कोई ख्याल नहीं रखता ,,
तैश था तुममें वो जवानी थी! तुम कहां हो!!
सालों की उसने शायरों से नफरत ऐ रकीब,,
उसे गजल की आदत लगानी थी!तुम कहां हो!!
लोग सोचते हैं ! मैं गांव जमीन देखने जाता हूं,,
पर मुझे घर की राख उठानी थी! तुम कहां हो!!
शुक्रिया करिए ललित आप खुद से हमसुखन हैं,,
हमसुखन हैं पर ये मेहरबानी थी! तुम कहां हो!!-
मैने आज अपना एक सुखनवर मार दिया ,,
हां सच सुना है! दरिया ने समंदर मार दिया ।।
ललित हम तो वो थे जो रहते थे दूर सबसे,,
फिर हम पर एक गुड़िया ने मंतर मार दिया।।-
मैने आज अपना एक सुखनवर मार दिया ,,
हां सच सुना है! दरिया ने समंदर मार दिया ।।
ललित हम तो वो थे जो रहते थे दूर सबसे,,
फिर हम पर एक गुड़िया ने मंतर मार दिया।।-
जो लोग यहां पे जितने किस्मत वाले हैं,,
उनके दिल पर उतने ही ज्यादा जाले हैं।।
तुम्हें बेवफ़ा कहने वाली लड़की से पूछो,,
उसने हमारे जैसे कितने कबूतर पाले हैं।।
तुम्हें होगा ऐब तख्त का या किसी रुतबे का,,
हम शायर हैं हम तो बस किताब संभाले हैं।।
ये पत्तियां नहीं बल्कि दरख़्त लगाते हैं आग,,
आजकल कोयले नहीं, अब दरख़्त काले हैं।।
मैं नींद से पहले हिज्र को सोचकर सोया नहीं,,
नींद आई तो हम दोनों बाहें गले में डाले हैं।।
जब एक अजनबी ने पूछा कि कहां से हो ??
मुझे याद आया गांव के दरवाजों पर ताले हैं।।
उसके दिल को भर दूंगा अपनी मोहब्बत से,,
पर यार पता है उस रोड में गड्डे नहीं, नाले हैं।।-
कभी लूटी इज्जत तो कभी शरीर काटे गए,,
मैं वो चीखें , वो आवाज कैसे भूल जाऊं।।
कभी बने गुलाम तो कभी लूटा गया हमें,,
अमावस सी वो काली रात कैसे भूल जाऊं।।
रंगरलियां मना सकते थे वो मगर मारे गए,,
बोलो मैं हजारों शेखर सुभाष कैसे भूल जाऊं।।
लहू बहाया है पानी की तरह देशभक्तों ने,,
मैं अपना वो पावन इतिहास कैसे भूल जाऊं।।-
आजादी के खातिर मरे , हर एक अग्रदूत को आवाज देता हूं,,
उठो राणा के वंशज , मैं युद्ध की भूख को आवाज देता हूं।।
और खूब उड़ाए हैं कबूतर आजाद भारत में अबतक हमने,,
मैं परशुराम का बेटा , शेखर की बंदूक को आवाज देता हूं।।-
मरते नहीं पर, इबादत में मारे गए ,,
तुम्हारे नैनों की , शरारत में मारे गए ।।
था भरोसा कि तुम , लौटकर आओगी ,,
हम इस भरोसे की , आदत में मारे गए ।।
कुछ को मारा , पलकों से धक्का देकर ,,
कुछ अश्क तेरे लिए शहादत में मारे गए।।
तुम न मिलती तो मुझे ये गम न होता ,,
पर हम तो तेरी ,इस मोहब्बत में मारे गए।।
लोग बताते हैं बड़ी हसीन जोड़ी तुम्हारी,,
कई दफा हम तुम्हारी खैरियत में मारे गए ।।
मुझे खा गया गम, किसी परी जाद का,,
तो कुछ लोग हुस्न की आफ़त में मारे गए ।।
कभी उगती शाम कभी सुबह को डूबते देखा,,
कोई दूसरों के लिए, कुछ दौलत में मारे गए।।-
सुबह से करवटें लेता आसमान,,
कभी साफ तो
कभी घनघोर काले बादलों से घिरा मैला सा।।
लगता है किसी परेशानी में है,,
और मैने कल देखा भी था
इसे इन्हीं बादलों से लिपटकर रोते हुए।।
क्या हो सकता है ,,
क्या इसे ये गम सता रहा है कि
इसकी बहन सूखकर फिर से कांटा हो जायेगी।।
नहीं , अभी तो सर्द बारिश का मौसम है,,
इसकी बहन भी
हरी भरी सी अपने प्रियतम से मिलने जा रही होगी।।
तो फिर क्या बात होगी,,
अरे हां सुनो
कल इसने बताया था कि उसने कुछ देखा है ।।
उसने देखा है ! एक बच्चा ,,
एक बच्चा
जो कि उसी आसमान के नीचे सो रहा है ।।
और जिसने नहीं खाया है ,,
बहुत दिनों से
पेट भरकर एक वक्त का खाना ।।
और वो इसलिए परेशान है
कि वो
सूखते हुए देख रहा एक नन्हे फूल को।।
एक नन्हे फूल को वो भी तब ,,
जब वो
दे सकता है उसे भरपूर बारिश का पानी ।।
और यही नहीं वो परेशान इसलिए है,,
कि वो नन्हा फूल
सो रहा है सड़क की पगडंडियों पर आसमान ओढ़कर।।
और आसमान का रंग ,,
काला
बादल के कारण नहीं पड़ा है ।।
जबकि उस नन्हें फूल ने,,
सपने में
फैंका है आसमान की तरफ एक मुड़ा हुआ पन्ना ।।
जिसमे उस नन्हें फूल ने ,,
लिखा है
आसमान से बड़ा बनने की ख्वाहिश को ।।
-
तुझे भूल जाऊं नहीं तो , नही सनम ! नहीं हो सकता,,
इश्क करके संभल जाए ऐसा मन नहीं हो सकता।।
पहला प्यार, अच्छा ! पहला प्यार चाहिए तुमको ,,
नहीं यार ऐसा इस जन्म, हां इस जन्म नहीं हो सकता।।
भरी भीड़ में देखूं तुम्हें और वो कोई और निकले,,
नहीं मियां नहीं हमें ऐसा भरम नहीं हो सकता।।
गांव के लडके को शहर में खा गया किसी का गम,,
अरे खा ही जाए किसी को, ऐसा गम नहीं हो सकता।।
जिसका पकाया तुम नापसंद करते हो नमक कम बताकर ,,
कलाई सुनी होगी तो जानोगे प्यार कम नहीं हो सकता।।-