फक़त चाहत का मसला है, जो अपनी जां लुटाते हैं,
तेरी तस्वीर रखते हैं, उसी पे हक जताते हैं।
तेरी चाहत में हम रहते फना, कुछ इस कदर साकी,
तुझे जब याद करते हैं, तो खुद को भूल जाते हैं।।
मेरे तुम हौसले की कब तलक गहराई नापोगे,
कि हम जब रूठ जाते हैं, तभी बस मुस्कुराते हैं।
शहर में रह रहे हो तुम, मगर ये ध्यान बस रखना,
यहां चेहरे के ऊपर सब नया चेहरा लगाते हैं।।
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