Anamica Choudhary   (Anamica)
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Joined 10 September 2018


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Joined 10 September 2018
2 MAR AT 20:25

यूं ही

(मैं -मिजाज और मोरपंख)
लोग सुंदर सुंदर बातें
कह गए और कह रहे हैं
लिख गए और लिख रहे हैं,
उकेर गए और उकेर रहे हैं.....

अंदाज से ज्यादा आंखों और नाक को
लगभग इतने ही इनके आस पास को

अनुमान से ज्यादा बालों और गालों को
लगभग इतने ही बढ़ती-घटती सांस को

आधे से ज्यादा कमर और काया को
लगभग इतने ही बाकी बचे-खुचे मांस को

जरुरत से ज्यादा श्रृंगार और हार को
लगभग इतने ही कसे-ढीले बंध पाश को

कयास से ज्यादा कोमल और नाजुक को
लगभग इतने ही छिपी उजागर प्यास को

कला, साहित्य ऐसे लोगों ने
लिखा है लिख रहे हैं
जिन्हें आधी दुनिया का सच पता ही नहीं ।

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23 SEP 2023 AT 8:34

यूं ही

कभी जल्दी में रहती हूं
न कहीं बेसब्री से इंतजार
न कहीं कोई कैसा भी महुरत।

कभी किताबों में घूसी रहती हूं
न कहीं समझ में सुधार
न कहीं कोई जरा जरुरत।

कभी गंभीर रहती हूं
न कहीं नई ऊलटपलट
न कहीं कोई कामकाज।

कभी अकड़ती रहती हूं
न कहीं का तख्तापलट
न कहीं कोई राजकाज।

फिर भी लिखती रहती हूं
आम आदमी का आदमकद अंदाज....

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14 SEP 2023 AT 8:51

बेटियां

हजार बार दिखाया गया, इससे बाल धो ओ
कई हजार बार बताया गया, इससे गाल-खाल रगड़ो
फिर बेटियां शैंपू-साबुन लाती रही
खाल-बाल-गाल रगड़ती रही...

हजार बार समझाया गया, फूल पत्ते पहनो
कई हजार बार बताया गया, इस पर बेल-बूटे बनाओ
फिर बेटियां सूई धागे लाती रही
घघरी-घाघरे पहनती रही...

हजार बार लिखा-पढा गया, कलियों सी कोमल हो
कई हजार बार बताया गया, धूप से खुद को बचाओ
फिर बेटियां ओढ़ती-ढकती-छुपती रही
छतरी-छाते-छायां ढूंढती रही...

हजार बार उकेरा-तराशा गया, सुंदर हो, बहुत सुंदर हो
कई हजार बार बताया गया, और सुंदर और कोमल बन जाओ
फिर बेटियां बनाव-श्रृंगार करती रही
संवरती-सजती-धजती घूमती रही...

बेटियों का भला किसी ने नहीं चाहा...

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14 AUG 2023 AT 18:14

इश्क_में
(हूर-हुजूर और सही सही बातें,😀)

देखकर क्या कहूं
तुम्हें देख कर गुस्सा बिल्कुल नहीं आता
और हंसी कभी आती है, कभी नहीं आती।

पढ़कर क्या कहूं
जिंदगी में जो लिखा था मिल रहा है
और तुम्हारे लिखे से बाकी समझ नहीं आती।

सोच कर क्या कहूं
तुम सामने भी सपना ही लगती हो
और सपने में भी कभी आती, कभी नहीं आती।

समझ कर क्या कहूं
तुम्हारी बातें कड़वी भी, मीठी भी
और समझ आती हैं कभी, कभी नहीं आती।

तारीफ में क्या कहूं
तुम सभी मूर्खों से समझदार हो
और परले दर्जे के बेवकूफों में नहीं आती।

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12 AUG 2023 AT 8:21



गीत-सीत-शूळ

सरकारी गीतों की किताब
(सीत(सित्यो)-साधारण आदमी का प्रतीक है,
शूळ-कलम का नाम है)

"सरकारी सामान"

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8 AUG 2023 AT 19:36



गीत-सीत-शूळ

सरकारी गीतों की किताब
(सीत(सित्यो)-साधारण आदमी का प्रतीक है,
शूळ-कलम का नाम है)

"इंस्पैक्टर राज"

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7 AUG 2023 AT 8:36



गीत-सीत-शूळ

सरकारी गीतों की किताब
(सीत(सित्यो)-साधारण आदमी का प्रतीक है,
शूळ-कलम का नाम है)

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2 AUG 2023 AT 10:45



गीत-सीत-शूळ

सरकारी गीतों की किताब
(सीत(सित्यो)-साधारण आदमी का प्रतीक है,
शूळ-कलम का नाम है)

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28 JUL 2023 AT 9:19



गीत-सीत-शूळ

सरकारी गीतों की किताब
(सीत(सित्यो)-साधारण आदमी का प्रतीक है,
शूळ-कलम का नाम है)

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8 JUN 2023 AT 1:25

इश्क _में

हमारे बीच प्यार होता
प्यार निभा रहे होते।

हमारे बीच नफरत होती
नफरत मिटा रहे होते।

हमारे बीच फासला होता
फासले घटा रहे होते।

हमारे बीच दीवार होती
दीवार गिरा रहे होते।

हमारे बीच कुछ नहीं
मैं लिख देती
धरती कुछ गीले से
कुछ सूखे से बनी है।

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