भीड़ के बीच उठता धुंआ
किवाड़ के बीच दबती आहट
दबे कदमों से दौड़ती सन्नाटा
तेज बजते गाने,
उठता धुआं, होंटों के बीच
आंखों में बसे दोस्ती की दलील
कंधे पर दिखती वो तुम्हारा तिल
नग्न आत्मा, रंगीन कपड़े,
बेशुमार, सैंकड़ो, तालियां
हंसी की ठहाकों से अजीब सी बेचैनी
पीने की चाहत, और गम गमगीन
अनगिनत नज़रें, और कोने में मैं
मेरे आगे तेजी से भागती हुई दुनिया,
धुआं से राख बनते देख रही
आहिस्ता, आहिस्ता।
एक जन्मदिन ।
-