बचपन जलाकर उस मासूम बच्ची का,
वो शख्स सरेआम इज़्ज़त बटोरने लगा ।-
Mujh me
"HUNAR"nahi hai
Khas..,,
"MASUMIYAT ke siwa
kuch nahi hai
mere Pas...-
सुना है काँटों के बाग में कोई सुंदर कली खिली है,
बियाबान झाड़ियों में नन्हीं सी मासूम बच्ची मिली है।।-
नजरों के तीर काजल कब तक सहे,
हीर की पीर पागल कब तक सहे।
हर रिश्ते की एक उम्र होती है,
पानी का बोझ बादल कब तक सहे।
टूटकर बिखर जायगी एक दिन,
ये वहशी निगाह पायल कब तक सहे।
चुल्लू भर पानी भी काफी होता है,
पाप के गोते गंगाजल कब तक सहे।
मासूम चराग को ओट भी है नापसंद,
कातिल हवा का दखल कब तक सहे।-
मासूम सा वो शख्स था
जिसपर दिल फनाह हुआ
कई टुकड़ों में हम थे टूटें
जब वो बेवफा हुआ !©-
था मासूम रंग...
था रूप सुहाना...
वो धोखा देंगी...
हमने क्या जाना..?-
किसी से छीनकर तुम्हें हम तख्त तो दे नहीं सकते
तुम मासूम हो तुम्हें सजा सख़्त तो दे नहीं सकते
तुमने तो इश्क में कितने वादे किए कुछ याद भी है
तुम तो जान देने को हाजिर थे आज वक्त नहीं दे सकते-
हर बार उसका भरोसा-ए-उम्मीद तोड़ देता हूं मैं,
उस नाजुक-सी कली को हर बार तोड़ देता हूं मैं।।
हर बार उसका नाता अश्कों से जोड़ देता हूं मैं,
उस मासूम को हर बार रोता ही छोड़ देता हूं मैं।।
-