एक शहर में रहकर एक टूक बात न हुई,
शहर बदलते ही वो प्यारी मीत हो गई,
नाम से अल्प, स्वभाव सरल
और बोली उनकी है चंचल...
पर उच्च विचारों से मानो कोई प्रेरक गीत हो गई-
भरम सबके तोड़ देना,
तुम मेरे भोले !
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लोग सोच रहे है इस बार,
मैं हार जाऊंगी !
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तुम थोड़ी सी हिम्मत औऱ,
देना मुझे भोले !!-
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ।।
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आओ सुनाए तुम्हें
अपनी आज की दास्तां...।
प्रभु ने कह दिया हमें नहीं
तुमसे कोई वास्ता...।।
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होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा।
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥
भावार्थ:-जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे। (मन में) ऐसा कह कर शिवजी भगवान् श्री हरि का नाम जपने लगे और सती जी वहाँ गईं,जहाँ सुख के धाम प्रभु श्री रामचंद्रजी थे।-
I don't need that
many people around
me I'm good by myself....
Diksha jha-
दिन खराब चल रहा है इसलिए
शांत बैठी हूँ जिस दिन दिमाग खराब
होगा उस दिन रिश्तों से लेकर मतलबी
दोस्तों तक सबका हिसाब होगा!🔥
Diksha jha-