थाली, ताली ,घंटी और शंख की ध्वनि कल सुनाई दी,
शायद पुराने समय ने फिर से दस्तक दी...
जब लोग मिलकर रविवार को अपनों के संग खुशियां मनाते थे ,घरवालों के संग अंताक्षरी खेलते व गीत गाते थे ...
आज सुबह चिड़ियों का चहचहाना और कोयल की कुहू कुहू ने मन मोह लिया, और ना ही किसी वाहन की आवाज ने हमें तंग किया... विज्ञान ,तकनीक ने हमें बहुत कुछ दिया ,किंतु बहुत सी चीजों का मज़ा हमसे छीन लिया...-
पूरी रचना अनुशीर्षक में........
ऐसा लग रहा था मानो खो गया हो
वक्त के भंवर में कहीं
शायद कुछ छूट रहा हो उसका
जीवन सफ़र में कहीं
जुबां कुछ भी कहने से कतरा रही थी
पर उसकी आंखों में ठहराव था
ठीक वैसे, जैसे अधूरी लिखी
कविताओं में होता है
भोर के इंतज़ार में स्याह पड़ी
दसों दिशाओं में होता है
शायद मुझसे या फिर
किसी अपने से या ज़िंदगी से
लगा उसके मन पर कोई
बेहद गहरा घाव था।-
कभी यूँहीं, जब हुईं, बोझल साँसें
भर आयी बैठे बैठे, जब यूँ ही आँखें
तभी मचल के, प्यार से चल के
छुए कोई मुझे पर नज़र न आए...-
साईं नाथ सब को धैर्य प्रदान करना क्योंकि जब भी विपरीत परिस्थितियां आती हैं,
प्रत्येक मनुष्य को चिंता बहुत सताती है।
किंतु धैर्य के साथ काम करते-करते धीरे धीरे बुरा समय दूर हो जाता है,
परंतु मुसीबत तो वह गरीब मजदूरों व मजबूर लोगों पर आई जो करते थे रोज की रोज कमाई।
आज भूखे बैठे राशन के लिए लाठियां खा रहे हैं, लेकिन कई जगह वर्दी वालों पर लोग पत्थर मार अपना संयम गवा रहे हैं।
सबको सहनशीलता प्रदान करो मेरे साईं,
समृद्धि हाथ जोड़ आपके समक्ष है आई, साईं नाथ आप करो सबकी भलाई।-
डर नहीं सतर्कता, दूरी और चाय का साथ बनाए रखें,
Covidiot वही लोग हैं जो आपके बीमार होने पर घर आके दो चाय पीके निकल लेते थे।-
जब बुराई इंसानियत पर होने लगे हावी,
जब प्रकृति को अपने मतलब के लिए पहुंचाई जाए हानि,
तब कहर बरसता है और कईयों को देनी पड़ती है जान की कुर्बानी।
आज विश्व में दुख की घड़ी है आई,
इससे लड़ने की हिम्मत देना मेरे साईं ।
साईनाथ करना उनकी भी भलाई, जो अनजाने में कुछ गलत बातें कह जाते हैं,
और दूसरों के ईश्वरीय विश्वास को ठेस पहुंचाते हैं।
प्रभु तो दीन दयालु है, सभी को गले से लगाते हैं, मानवता का पाठ ही सारे धर्म सिखाते हैं।-
चिंगारी गर जल ही गयी तो, आओ इसे मशाल बना लें
स्वर्णिम अवसर राष्ट्र भक्ति का, इसे सृजन का साल बना लें
वो राहों में कण्टक बोयें, फिर अपनी करनी पर रोएं
बैठ धूल में नीरसता से, क्यों अपना हम कल भी खोएं
आओ मिल करताल बजा लें, इसे सृजन का साल बना लें
घना अंधेरा देख धरा पर,ऐसे तो पल पल न मरा कर
भोर जरा होने को है, तू थोड़ा सा तो धैर्य धरा कर
दीपों का एक थाल सजा लें, इसे सृजन का साल बना लें
स्वागत को तैयार खड़े हैं, अपने सपने बहुत बड़े हैं
नवयुग आने वाला है, हम आलस में ही क्यों जकड़े हैं
आओ नई मिसाल बना लें, इसे सृजन का साल बना लें
मिलकर सबका आज बनाएं, देशभक्ति का ताज बनाएं
जंग बड़ी जीतेंगे हम फिर, शंखनाद कर साज बजाएं
चलो मधुर सुरताल बना लें, इसे सृजन का साल बना लें-
" Kmaal ki baat " hai na....
Log jis shaer ko kabhi apna khate the ,
Aaj usi shaer ko "ajnabi" karar de ke
Lambi lambi " duriyan "
Tay kiye ja rahe hai...!!!!-
इंसान, इंसान से डर रहा है...
एक छोटा सा विषाणु मौत का तांडव जो कर रहा है,
चेहरे का रंग अब फीका पड़ रहा है,
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र अब कुरुक्षेत्र का मैदान जो बन रहा है...
क्यों ना एकता अखंडता का संदेश पूरे विश्व को दिया जाए,
एक पंथ दो काज कर भारत को पुनः विश्व गुरु बनाया जाए।
घर में रहकर कोरोना को भगाया जाए,
सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर,
हमारे देश का कीर्तिमान स्थापित किया जाए।
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कदमों तले कंकड़ पत्थर,
नींद से समझौता करने को वो तैयार,
इतना हौसला कहां से लाते हो यार!!!
कंधों पर सामान का बोझ,
आंखों में उम्मीदों के हथियार,
इतना हौसला कहां से लाते हो यार!!!
पैदल वो मीलों चले,
मील के पत्थर भी खत्म ना होने को तैयार,
इतना हौसला कहां से लाते हो यार!!!
(भारत के प्रवासी श्रमिकों के लिए)
🙏😷🇮🇳-