कड़ी धूप में हैं बिल्कुल, ठंडी छाँव की तरह
शहर सी ये ज़िंदगी, हैं वालिद गाँव की तरह-
बचपन से सुनता आया हूँ
कि अपनी बिन ब्याही माँ
का पाप हूँ मै।
आज ऐसी ही किसी माँ के,
कूड़ेदान मे पड़े बच्चे का
बिन ब्याहा बाप हूँ मैं।-
जिस बेनाम बचपन के लिए पूरी जवानी
पिताजी की वृहत परछाई को कोसा,
उस परछाई को अब देखने पर मालूम होता है
कि वो पिताजी की दी हुई छांव थी।-
पहले जब भी कभी बुरे हालात होते थे
कोई फिक्र नहीं थी , पापा साथ होते थे-
भागते-भागते चप्पलें घिस गई, जिंदगी फिर भी अपनाती ही नहीं
फटी चप्पलें पापा की कैसे हँसती थी, मेरी तो मुस्कुराती भी नहीं-
Never believe when your father tells you that superheroes don't exist. One is standing right in front of you.
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मुखिया
जिंदगी के दरिया में,
अपने को डुबा,
रिश्तों को बचा लाया,
अपने हवाले खुद को कर,
अपना ही कत्ल
बड़ी राहत से करा आया।
परिवार के डोरों को
मजबूत करने के ख़ातिर
समाज के कीड़ो से
रेशम में खुद को
तबदील करा लाया।
मौसमों का दंश झेल
खूँटी पे टाँग सिद्धांत
छोटो को प्यार
बड़ो का सम्मान
खुद को भूला आया।
मुखिया,
सीने में बचपने को दबा
जवानी में कन्धे पे
अनुभवों का बोझ उठा लाया।-
जो मांगू दे दिया कर
ए ज़िन्दगी
कभी तो मेरे "पापा" जैसी
बन कर दिखा...-
सुनो ना पापा...
कभी सख़्त पेड़ तो कभी फूलों की डाली बन जाते हो
कभी खुद एक खेल तो कभी मेरे लिये खिलाड़ी बन जाते हो
कैसे कहूँ मैं तुम्हे, इस दिल से धन्यवाद मेरे पापा
तुम वही हो ना जो, ख़ुद भूखे रह के, मेरे दूध की प्याली बन जाते हो ।।
"Rudra"
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