बनारस ठहरा हुआ है
बहते बहते कहीं
अनंतकाल से
देखा है इसने सब
जैसे देखा कुछ नहीं
अनंतकाल से
बनारस अपना सा है
पर है किसी का नहीं
अनंतकाल से-
कुछ नज़्म है।
दुनिया मेरी नज़रों से दिखें,
ये वैसे लफ्ज़ है।।
👉ख्वाहिशों की ... read more
भागते-भागते चप्पलें घिस गई, जिंदगी फिर भी अपनाती ही नहीं
फटी चप्पलें पापा की कैसे हँसती थी, मेरी तो मुस्कुराती भी नहीं-
इतने तन्हा हो कि सफ़र से डरते हो तुम
भला फिर क्यों मंजिल की बात करते हो तुम
मेरा मक़सद नहीं की उस पार चला जाऊं
डुब भी सकता हूं, अगर डुबने को कहते हो तुम-
मैं हर उस जगह बैठा, जहां मुझको बैठाया गया
मैं अपने मन का मालिक हूं, बैठाने के बाद बताया गया
सरहदें छोटी हैं बहुत अगर इरादा हो उस पार का
बनाकर सरहदें फिर ये सबको समझाया गया-
मेरी बिगड़ी आदतों का लिहाज़ रखा है जिंदगी ने
हर मौसम में जलाने को चराग़ रखा है जिंदगी ने
मेरी तबियत तो बहुत पहले बिगड़ गई होती
पर दुरस्त रखने को बहुत यार रखा है जिंदगी ने-
अजब हिसाब है कि
मर्द तब तक भला नहीं होता
मानती नहीं जब तक
कोई औरत भला उसको।-
मुझसे गुजरकर भी ,मेरे तुफानों का उसे अंदाजा नहीं
वो आएगी किसी रोज़, बस इसलिए घर में दरवाजा नहीं-
ये शहर भला, इतना तन्हा क्यों लगता हैं
इसने तो बरगदों को काट कर लोग इकट्ठे किए थे-
बहुत ज्यादा तो नहीं, पर सब उसी को बताता था
मेरे हिस्से का ख्वाब भी, उसी की गली को जाता था
अब ग़म भी आंखों से छलकता है, तो वो मुड़ता नहीं
जो कभी मेरी सांसों की हलचल से ठहर जाता था-