QUOTES ON #DUSHYANT

#dushyant quotes

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17 APR 2017 AT 19:18


सुबह हुई है अभी, पर शाम का आलम क्यों हैं
घर की सभी बत्तियाँ बुझा लो यारो

हर कोने से लोग देखेंगे अब तमाशा
तुम भी अब बैठ मज़ा लो यारो

तुम्हारी बीमारी का नाटक मोहतबर अभी कहां
दिखावे के ही ख़ातिर कोई दवा लो यारो

तुम्हारे ही ख़रीदे हुए तोते हैं ये
जितना मर्ज़ी इनसे गवा लो यारो

रात भर जागे हो, पर यकीन कैसे हो
जाकर अपनी आँखें सुजा लो यारो

आगे आने वाली है गलियाँ सचाई की
अपने अपने पाँव, दबा लो यारो

क्या फ़र्क ,जो लू का हैं ज़ोर आस पास
बढ़ आगे, अपने हिस्से की हवा लो यारो

इज्ज़त बेच के हो जाओगे मालामाल
थोड़ी अपनी भी आबरू गवा लो यारो

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9 JUN 2022 AT 21:02

सुनो, मुम्बई में आज
मौसम की पहली बरसात हुई है
तुम्हें याद है क्या हमारा प्रथम अंतरंग प्रसंग?
कितना भीग गए थे हम!

दुनियावी मानकों से परे अलौकिक जुड़ाव में हम
कभी भीगे तो कभी मरुस्थल रहे!

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26 APR 2022 AT 21:25

चांदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी

फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा
बर्फ़-सी वो पिघल रही होगी

कल का सपना बहुत सुहाना था
ये उदासी न कल रही होगी

सोचता हूँ कि बंद कमरे में
एक शमअ-सी जल रही होगी

तेरे गहनों सी खनखनाती थी
बाजरे की फ़सल रही होगी

जिन हवाओं ने तुझ को दुलराया
उन में मेरी ग़ज़ल रही होगी

चांदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी
— दुष्यंत कुमार— % &

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3 MAY 2020 AT 13:52

मन की केतली भरी है मेरे प्यार से
मुझ पर चढ़े तेरे खुमार से
बस तू एक बार चख तो सही
थोड़ी ही सही
पर मेरे मन की केतली खाली कर तो सही

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13 DEC 2022 AT 13:41

जो आँखें प्रथम दृष्टि में ही
मेरे चितवन को अपने में समाहित
और मेरी काया में स्वयं को प्रवाहित कर चुकी थीं,
मैं नहीं चाहूँगी कि उन आँखों में अपने अस्तित्व का
अंश भी देखने के लिए तरस जाऊँ!

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14 FEB 2019 AT 9:20

😊🌹*

*शब्दों का भी तापमान होता है।*

*ये सुकून भी देते हैं, और जला भी देते हैं।*

🙏

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19 MAY 2020 AT 18:42

यहाँ दरख्तो के साये मे धूप लगती हैं

चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिए...!

दुष्यंत कुमार

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12 AUG 2019 AT 16:22

तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ ...

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6 OCT 2017 AT 17:52

यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है

-दुष्यंत कुमार

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1 SEP 2019 AT 14:15

मै जिसे ओढ़ता बिताता हूं
वो गजल आपको सुनाता हूं

तू किसी रेल सी गुजरती है
मै किसी पुल सा थरथराता हूं

एक जंगल है तेरी आंखों में
मै जहां राह भूल जाता हूँ

एक बाजू उखड़ गया है जबसे
मैं और ज्यादा वजन उठाता हूं

तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने करीब पाता हूं

- दुष्यंत कुमार

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