सर्दियों की शाम
एक उदास भींगी हुई गजल
जो ख़त्म नहीं होती कभी
अलगनी पर सूखता
तेरा नीला दुपट्टा
जो सूख नहीं पाता पूरा
चीड़ के जंगल में
तेज हवाओं का शोर
तुम्हारी यादों की तरह
अंदर तक चीर देता है
ऐसा क्यों लगता मुझको
यह मौसम नहीं तुम हो
-
इन जाड़ों में
फिर बक्सों में से
निकाले जाएँगे ऊनी कपड़े
फैल जाएगी
नैफ़्थलीन बाल्स की महक
लेकिन उससे भी तेज़ ख़ुशबू होगी
पिछले जाड़ों की
नीला कोट,हरा ब्लेज़र
पीला स्वेटर,लाल पुलोवर
ये सब हैं
स्थायी स्मृतियों के प्रतिबिम्ब
याद दिलाते
धरती ने एक चक्कर
किया है पूरा-
देख रहा था उन्हें तालाब में डूबते उतराते हुए
किंकर्तव्यविमूढ सा खड़ा रहा
तैरना नहीं आता था
फिर भी भागा
उनके सबसे नज़दीक किनारे पर
इस बार नहीं
सोचता , निश्चय करता
कूद गया पानी में
मेरे पिता थे वो
पता नहीं कैसे किनारे पर लाया
जीवित हो गए वो
उठ के बैठ गए
मैंने डरते डरते बोला
थोड़ा आराम करिए पापा
फिर याद आया
अरे अब तो बीस बरस हो गए
अब थोड़ा कड़क के बोला
आराम करिए पापा
मैं भी अफ़सर बन गया
आप को क्या ज़रूरत
काम पे जाने की
मैं संभाल लूँगा
थोड़े आश्चर्य से देखा मुझे
फिर उसी दृढ़ता से बोले
नहीं रात की बस से जाऊँगा
तुम मुझे बस अड्डे छोड़ देना
थोड़ा पानी पिला दो
उनको कहीं छोड़ के जाने से डरता मैं
वहीं से आवाज़ दी
अरे पानी पिलाओ पापा आए हैं
गला रूँधता चला गया
घुटती चली गयी आवाज़
नींद खुल गयी
पिता आज भी सोते से जगाते हैं
पित्र पक्ष में पिता ऐसे ही आते हैं
थोड़ा तिल थोड़ा जल
जाने कैसे रह पाते हैं
पित्र पक्ष में पिता ऐसे ही आते हैं
-
तुम्हें ही
दिखाना होगा साहस
मुझे मुक्त करने का
इस जन्म जन्मांतर के बंधन से
क्योंकि
हर जन्म में
मुझे न चुनने का
विकल्प भी तुम्हारा ही होता है
मैं तो तुम्हारे होने और
न होने के बीच की झिल्ली
में अवस्थित
जीवन द्रव्य में
प्रेम के गर्भनाल में जकड़ा
प्रतीक्षारत हूँ
मुक्ति का
मुक्ति
अनंत से
आश्वस्ति से
अनुभव से
अस्पृश्यता से
तुम्हें ही दिखाना होगा साहस
मुझे मुक्त करने का
-
देखा है प्रेम ...
पागलपन, जुनून, बेइंतहां,
जेठ की दोपहरी जैसा
तर बतर
भिगो जाता है तन मन को
ताप जिसे शीतल भी
होना होता है कभी
प्रेम ऐसा भी पाया है
छुईं मुई ,
कपास के फूल जैसा कोमल
पवित्र , जाड़ों के घाम जैसा
बादलों से आशंकित
एक अधूरापन लिए
कैसा होता होगा वो
अपने मुकम्मल रूप में
अंतस को भिगो दे जो
पहली बारिश में मिट्टी से
उठने वाली सुगंध की तरह
जो किसी रिक्तता में समा
पूर्ण कर दे
जिसके पास सारे उत्तर हों
प्रेम भरे प्रश्नो के
जिसे भरोसा हो प्रेम पगे उत्तरों में
अपने प्रश्नों के
जो मुट्ठी में भर निचोड़ दे
आख़िरी बूँद तक
और भर दे फिर
प्रेम के ही रस से
ऐसा प्यार होता है न
डरता हूँ कहीं ये प्यास तो नहीं
-
रूह से रूह का
बस इतना राब्ता रखना
जब भी सोचो मुझे
हौले से मुस्कुरा देना
है गुज़ारिश यही
मुलाक़ातो की
न ख़्वाहिश रखना
जो भी साझा था हमारा
उसको न जाया करना
बस यूँ जान , मेरी जान
अब न कुछ कहना है
बनाकर बाँध तेरी यादों का
बस जीते रहना है
जो देखा तुझे तो
ये बाँध टूट जाएगा
अब मिला यार तू
तो शर्तिया बिछड़ जाएगा।
#जौनपुरी-
रूह से रूह का
बस इतना राब्ता रखना
जब भी सोचो मुझे
हौले से मुस्कुरा देना
है गुज़ारिश यही
मुलाक़ातो की
न ख़्वाहिश रखना
जो भी साझा था हमारा
उसको न जाया करना
बस यूँ जान , मेरी जान
अब न कुछ कहना है
बनाकर बाँध तेरी यादों का
बस जीते रहना है
जो देखा तुझे तो
ये बाँध टूट जाएगा
अब मिला यार तू
तो शर्तिया बिछड़ जाएगा।
#जौनपुरी-
किसी झूठे विज्ञापन सा अब ये साल दिखता है
जो देखे थे सुहाने ख़्वाब कहाँ वो हाल दिखता है
जहाँ चाहत, वफ़ा औ इश्क़ के सब रंग लगाए थे
वहाँ नाकाम हसरतों का अब एक जाल दिखता है
हज़ारों बार ये सोचें क्यों तोहमत लगाएँ उन पर
हमारा आइना है हमें बस अपना हाल दिखता है
हवा कैसी भी हो परिंदो को अब डर ही लगता है
हर परवाज़ में उनको बहेलिए का जाल दिखता है
वो जो जीतने चला था, जहाँ को सिकंदर बनकर
वो क्यों हारा किसी को अब न ये हाल दिखता है
दुनिया दारी की सब तदबीरें सहेज ली ज़हन में हमने
घटाएँ घटाएँ होती हैं ज़ुल्फ़ों का न जाल दिखता है
#जौनपुरी-
Grow old along with me! The best is yet to be, the last of life, for which the first was made. Happy New Year 2018
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