समाता है मन नाज़ुक-मिज़ाजी के पैरहन में
जब चढ़ जाती है थकान जिस्म की जेहन में-
हैं घर में तो क्या ग़म है
ख़तरा तो यहां कम है
अपनों का तो संग है
रिश्तों का यहां संगम है
बागवानी में अलग रंग है
-
உன் பாதந்தொட்டு
உயிர் போகிடவே
மலரிதழ்கள்
மௌனமாய்
மயங்கி விழுகின்றன !
-
शाख से जो फूल टूट गया एक बार,
शाख पर उसे दोबारा उगते नहीं देखा,
बिछड़ गया जख्म दे जो एक बार यहां पर,
इस जख्म को हमने कभी सिलते नहीं देखा,
कांटो से घिरे फूल पर बैठी है तितलियां,
तितल़ी के पैर को छिलते नहीं देखा,
एक पेड़ जड़ समेत उखड़कर गिर गया,
जो पेड़ कभी आंधियों में हिला तक नहीं..।
--"उमा"-
मैं चाहता हूँ तुम क़भी मेंरे सामने से गुज़रो औऱ मैं तुम्हें देखकर नजरअंदाज करते हुऐ मुँह फ़ेर लूँ 😁
#फ़िर_कैसा_रहेगा
#Psycho_Writer✍
#Мя_NiЯwAnDaЯ★★★-
दिल्ली की दुर्घटनाओं से,
मेरा दिल बंद-बंद सा है,
बेकसूर लोगों की मौत हुइ,
बेहिसाब लोग घायल हुये,
मन कुंद-कुंद सा हो रहा है,
दिल में दर्द बहुत हो रहा है,
प्रभु से विनती है सब ठीक हो,
सभी मनुष्य पूर्ववत खुशहाल हों..।-