माँ तड़प तड़प के मर गयी भूख से इक रोज,
पण्डो़ ने खा पीकर फिर स्वर्ग पहूँचा दिया।-
स्वार्थी तू भी है।
स्वार्थी मैं भी हूं।
तब तक।
जब तक।
'मैं' की भावना रहेगी ।
हम दोनों के दरमियां।
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वो पहाड़ रो रहा है
अपने चिथड़े देख कर
ये व्यवहार में कड़कपन
हमने दिया है तोहफे में
वो सख़्त वृहद् आसमां छू लेता जो
स्वार्थ की चोट से कराह उठा है
चट्टान से टूटा हर एक पत्थर
चीख कर कहता है कहानी
पूजे जाने वाले कभी दीपो से
हथोड़ो की मार असहनीय है
मशीनरी ज़माने में हृदयहीन है सब
झलक रहा है हर कंकड़ में
असंवेदनीय पीडा का दर्द-
बस अपनी जरूरतो का भगवान तलाश लेता हूँ,
गरीबी में भोले,रईसी में कान्हा को टटोल लेता हूँ।-
सब सच्चाई छुप गई स्वार्थ में यहां
अब झूठ ने सब जगह जगह बनाई हैं-
बेशर्त दोस्ती
"सच्ची दोस्ती" तो बिना किसी
स्वार्थ और "शर्त" के होती है।
और जो "शर्तो" पे हो....
वो दोस्ती नही "सौदा" होता है।-
ना कोई हलचल , ना कोई बेचैनी होगी
शिथिल पड़ा शरीर पर दिल में शांति होगी
चलूंगी तुम्हारे साथ कृष्ण लोक तुम्हारे
जहाँ स्वार्थ नहीं सिर्फ प्रेम की नदियाँ होंगी!!-
पहले खुद को बदलो फिर ओरों को बदलने की बात करेंगे,
सब मिल-जुल रहें कि हम ऐसे हालात करेंगे |
मन से अपने स्वार्थ-सिद्धि की गर्त को हटाकर ,
दिलों में अपनेें निस्वार्थ भाव के जज़्बात भरेंगे|
नाउम्मीदी के स्याह बादलों को मन-मस्तिष्क से हटाकर,
बस केवल महकती उम्मीदों के ख्यालात रखेंगे|
सारी दुनिया अपनी बाँहों में समा जाएगी जो ,
मानवता को अपनाकर शत्रुओं से भी इल्तिफ़ात करेंगे|
खुद को बदलेंगे गर तो दुनिया भी बदली नजर आएगी ,
गैरों के आफ़ात ना गिनकर जो खुद के ही अगल़ात गिनेंगे|
स्वहित को भूलाकर जब हम परहित को अपना लेंगे ,
तब इस जहाँ को खुशियों भरी एक सौगात करेंगे|
......निशि ..🍁🍁
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