इश्क़, प्यार, मोहब्बत, ये सब खुदा के नाम है
ये दुनियाँ अब तलक इस बात से अनजान है-
हे महादेव दुआ मांगता हूं सलामत रहे मेरा यार ,
बात हो ना हो स्वस्थ व सलामत रहे मेरा प्यार ।-
"मेरा तजुर्बा"
धन दौलत ,शोहरत,गाड़ी,बंगला,इज्जत,
नफरत,मुहब्बत,बड़े-बड़े रिश्ते नाते ये सब
चीजें बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती
दुनिया में सबसे खुशनसीब इंसान वही है
जो पूरी उम्र स्वस्थ और तंदरुस्त रहे
खुदा सबको सही सलामत रखे
दुआओं में याद रखना-
अपनी मानसिक संवेदनाओं को लिखना,
आपको मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है।
लिखते रहें, स्वस्थ रहें।
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हम आग नहीं लगाते
फिर भी जलते हैं कुछ लोग
सब स्वस्थ दिखाई देते हैं
पर लगता है कि है कुछ रोग-
शादीशुदा जिम्मेदारियों में व्यस्त हैं,,
जवान शायरियों में व्यस्त हैं,,
बच्चे मोबाइल में गेम में व्यस्त हैं,,
फिर पूरे देश के हाल को एक
व्यक्ति में सौप देते हो
और फिर उसको जिम्मेदार भी बना देते हो,
खुद बेफिक्री से घूमते हो,,
कोई नियम नहीं निभाते हो,,,
और समाचार सुनकर बड़ी आसानी से
अपने मुख से दो चार शब्द कहकर
दूसरे में दोष मंड देते हो,,,
क्या इस परिस्थिति के लिए तुम खुद
जिम्मेदार नहीं हो क्या,,,,,-
विश्व में स्वास्थ्य हो, सब ख़ुशहाल हो।
यहीं चाहिए कि सबका अच्छा हाल हो।
कर्म, योग और ध्यान में सब लिप्त रहे।
किसी की अंतरात्मा न कभी बेहाल हो।
उदासी का नाम ओ निशान भी न रहे।
ख़ुशियों से सबके गाल सदा ही लाल हो।
आयुर्वेद का अमृत्व हो सबके जीवन में।
आयुर्वेद चमत्कार से सब मालामाल हो।
किसी के साथ स्वास्थ्य की धाँधली न हो।
ज़हरीली दवाई से कोई भी हलाल न हो।
डॉक्टर "भगवान" हैं, आजीवन ही रहे।
उनके अंदर कोई "शैतान सँवार" न हो।
लालच और लोभ से हम दूर रहे "अभि"।
कभी भी जीवन में न कोई "मलाल" हो।-
जिसपर ...वह स्फूर्ति से भरपूर
एक नई ऊर्जा के साथ मुस्कुराए
सूरज की पहली किरण उसे छू जाए
वह स्वस्थ निरोगी काया पाए
समय पर सभी काम बन जाए
स्वस्थ तन-मन के साथ आगे बढ़ता जाए
सुबह का रंग चढ़ जाए...-
" सुख "
सामान्यतः जिसके ऊपर कोई कर्ज न हो, वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो, खाने के लिए भोजन की व्यवस्था हो, रहने के लिए छत हो, रोजगार हो, जीवन जीने सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवशयक धन हो, तथा मन मे शांति हो व किसी के प्रति ईर्ष्या न हो, और साथ चलने वाला सच्चा साथी हो।-
🌟हमारी विछिप्त मानसिकता = एक आग्रह 🌟
कुछ निम्नतम पुरुष मानसिकता अभद्र नजरों से तौलती हैं स्त्री के अंग-प्रत्यंग को,बेटियां या बहनें अक्सर वहां बेहद असहज हो जाती हैं
आपने कभी सोचा है कि आपकी वास्तविक "मैच्योरिटी" इस बात में है की आपके पास बैठी कोई स्त्री कितनी सहज रह पाती है !अगर वो जरा सी भी असहज हो रही है तो समझ जाओ की अभी भी बहुत कुछ है आपके अंदर जिसका परिमार्जन होना बाकी है,कोई सीख है जो अधूरी रह गयी है,संस्कार का कही दम सा घुट गया है,हया ने अपनी वास्तविक जगह छोड़ दी है,
किसी मॉ की परवरिश लजा गयी है,विमर्श विसंगत सा हो गया है,और सबसे गंभीर आपकी सभ्यता पर एक दाग़दार प्रश्नवाचक चिह्न लगा गया है,,,,,???
""स्त्रियाँ खुद डूब जाने को तैयार रहती है,समुंदर अगर उनकी पसंद का हो तो....""
इक स्वस्थ समाज तैयार तो कीजिए जरा उनको भी तो बिना भय के रहने तो दीजिए।-