QUOTES ON #स्री

#स्री quotes

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श्रापित होती कुछ स्त्रियाँ....!

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17 MAR 2020 AT 15:19

एक स्त्री जब प्रेम करती है ,
वो बस... प्रेम करती है ।

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21 JUL 2020 AT 13:16

आँखों में काजल,
माँथे पर बिंदी, गले में
पिया के नाम का मंगल सूत्र
और माँग में सिंदूर ये वो
श्रंगृार है जिस में हर स्री
खूबसूरत लगती है|

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17 MAR 2020 AT 17:59

और, एक स्त्री जब घृणा करती है,
तो बस....घृणा करती है।

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15 MAY AT 11:08

इंद्रप्रस्थ 

अपने मन के महाभारत की
तुम ही द्रौपदी हो
और तुम ही कुंती हो

भीतर चल रहे युद्ध पे
अकेले ही तुम्हे विजय पाना है |

तुम्हे ही दुष्ट कौरवो का सामना करना है |
तुम्हे ही पांडव बनके धर्म की राह पे चलना है | 

इस कुरुक्षेत्र में लडने के लिए 
तुम ही धनुर्धारी अर्जुन हो
और तुम ही चक्रधारी कृष्ण हो |

तुम्हारे अंदर जो भी सैलाब उमड रहा है
उसे तुम्हे ही संजय बनकर देखना है
और पितामाह की तरह फैसला कर के
अपने जीवन का इंद्रप्रस्थ संभालना है |

अलबेली
लफ्जों की अलबेली कहाणी 🍀
Coming soon...

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6 AUG 2020 AT 11:57

स्त्री.......

स्त्री को इतनी पीड़ा क्यूं?
क्या हक़ नहीं है उसका ?
हो चेहरे पे उसके भी मुस्कान!!
घर को उजागर करने वाली;
आज हिंसा की शिकार कू होती है
किलकारी से गुंज उठता है घर सबका
तो कू दर्द भरी" चीख से काप उठता "है रुह उसका;
ममता से भरी होती है वो स्त्री जिनका "मोल "नहीं!!
लुभाता है स्त्री का हर रूप जिनकी लोगों को" कद्र "
ही नहीं!!
(अरे! शर्म कर हिंसा करने वाले उनके बिना तेरा भी कोई वजूद नहीं)!!😭😭😭arti

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21 DEC 2021 AT 13:48

चाहूल लागली मला, पुन्हा त्या भूतकाळाची
पुन्हा घुसमटलेल्या मनाची, वेदनेच्या गावाची
न कळत संचार होतोय, होतीय आलौकीक ऊर्जानिर्मिती
थोड बळ दे रे देवा, अन्यायाला लाथाडण्याची.

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10 APR 2020 AT 23:14

स्त्री

माँ ने रोक टोक लगाई इसे ,
प्यार का नाम दे दिया ..

पिता ने बंदिशें लगाई ,
इसे संस्कार का नाम दे दिया..

सास ने कहा अपनी इक्षाओं को मार दो,
इसे परंपरओं का नाम दे दिया..

ससुर ने घर को जेलखाना बना दिया,
इसे अनुशाशन का नाम दे दिया..

पति ने अपनी सारी इक्षाएँ थोप दी ,
इसे वफ़ा का नाम दे दिया..

थकी सी खड़ी है जो जिंदगी की राहों में ,और
हमने उसे किस्मत का नाम दे दिया..

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28 FEB 2019 AT 10:19

चुल आणि मुल
दोन्हीही कौशल्याने हाताळतेयं
आजची स्त्री नविनजग साकारतेयं

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8 OCT 2019 AT 9:26

हाँ रखती हूँ एक पुरुष हिस्सा
पुरुष से ही बचने को
में भी अपने अंदर
तभी तो रह सकती है स्त्री nehu.s(शब्दिता✍)
पुरुष समाज में बनकर कलंदर
रखती हूँ स्त्रीत्व को भी सहेज कर हर हाल में
करने को उपकार सृष्टि का
करने को सृजन पृकृति का
करने को आभार मुझे बनाने वाला का
में करती हूँ खुद को सवीकार मातृत्व रूप मैं
मगर ,;,;,;,;,;,;,;,;
रखती हूँ सख्त मरदाना मिजाज भी जीने को
चीरहरण से जो बचाना है अपने सीने को
रखती हूँ तवांग सी एक चिंगारी भी कि
जब मिले वनवास तो ;,;,
आत्म्सम्मान से ना रहूँ हारी में
सुकोमल हूँ ह्रदय से कर सकती सब त्याग
संहति रहूँगी बन कर सन्गिनी साथ
कठोर हूँ पर्वत सी जब छोड़ दोगे मेरा हाथ
राम से प्र्रेम है मुझे पर
रावण से भी ली है सीख मैंने
अगर दुर्गा हू काली हूँ सरस्वाती हूँ
हूँ ****अर्धांगनी*** भी
भूल ना जाना जननी हूँ मगर मरदानी भी




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