हाँ वो आई थी,
संग अपने ढेरों सपने लायी थी।
बसाएगी वो भी अब अपनी एक नई दुनिया,
वो भी यह अरमान सजाये दिल में,
इस घर की चौखट पर आई थी ।
पर यहाँ कुछ ज़िम्मेदारियां थी पहले से,
कुछ रिश्ते थे उलझे से,
कुछ अनकहे जज़्बात थे समझने को,
तो कुछ इन्तेहाँ थे ज़माने के।
खुद ममता की छाँव से निकल ,
अब उसको ममता बिखेरनी थी।
दुखा न दे वो दिल उन मासूमो का,
अब उसे यह भी सम्भालना था।
तराजू में रख उसने अपनी ममता थी बाटी,
ना अपने को जयदा न उनको कम थी बाटी ।
समाज को उमीदें थी उससे ममता के त्याग की,
पर देना ना था अधिकार उसको माँ की चिन्ता भरी फटकार की।
बोलने से पहले आज भी उसको सोचना पड़ता है,
गलत न समझे समाज यह देखना पड़ता है,
माना वो भी माँ है उन बच्चों की
पर आज भी केहता समाज उसको "सौतेली माँ" जो है।
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कर्तव्य का पालन करना
और प्यार जताना।
सौतेली मां के कहने पर
चौदह वर्ष का वनवास जाना
और शबरी के जूठे बेर खाना।-
सौतेली मां......
बच्ची......!!
क्या जिवन में ऐसा होता है......इतना निष्ठुर ह्रदय किसका होता है.....
क्या मुझे ममता का आंचल नसीब नहीं.....
या मेरी सी बुरी किसी की तकदीर नहीं.....
क्या धरती पे भी नर्क होता है......
क्या कोई बच्चा..... रात भूखे सोता है.....
कहते हैं.....इस जहां में ईश्वर "मां" में होता है.....
रोते... बिलखते... सिसकते सारी रात गुजरती है....
मां का गोंद कहां नसीब होता है......
"मन" मेरा मुझसे सवाल करता है.....
मां ...के प्रेम में भी भेदभाव होता है....
क्या हर बच्चे को बांसी रोटी नसीब होता है....
क्या मेरा कोई हक़ नहीं.....या मेरे हाथों में वो लकीर नहीं....
क्या "मां " की ममता मेरे नसीब नहीं.....
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सौतेली
पर
माँ हुँ
समाज में सौतेली
पर बच्चो की माँ हुँ
कान्हा की यशोदा जैसे मैं भी माँ हुँ
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पहले डांटा, झिड़का फिर गले लगा लिया उसने,
वो सौतेली सही मगर माॅं मरी नहीं अंदर से।-
भाग-३७
काम करते हुए या सिलाई-कढ़ाई करते-करते भी हम बतियाते रहते। उसने अपनी पिछली जिंदगी के बारे में काफी कुछ बताया। उसकी माँ तो बचपन में ही गुजर गई थी फिर वो ये सोचकर बहुत दुखी होती कि उसकी बेटी को तो माँ होते हुए भी बिना माँ के रहना होगा लेकिन वो क्या करती उसके माँ-बाप ने उसे ज्यादा पढ़ाया- लिखाया नहीं। उसकी सौतेली माँ वैसे तो कुछ नहीं कहती थी पर माँ जैसी भी नहीं थी। वो जल्द से जल्द उसकी शादी करवा पीछा छुड़वाना चाहती थी। उसके गाँव में आँठवी कक्षा तक का ही स्कूल था उसके बाद सारी लड़कियों पास के गाँव में पढ़ने जाती थी लेकिन उसे नहीं भेजा। वो बहुत होशियार थी आँठवी कक्षा में अपने गाँव में प्रथम आई थी लेकिन सौतेली माँ ने पिता से कहा "चार-चार लड़कियाँ हैं तुम्हारी,एक दो की शादी कर दोगे तो कुछ जिम्मेवारी कम होगी और जितना ज्यादा पढ़ाओगे उतना ही ज्यादा दहेज देना पड़ेगा"। उसके बाद उसके पिता ने लड़के देखने शुरू कर दिए और जल्दी ही लड़का मिल भी गया। लड़के ने दस तक पढ़कर
आईटीआई से कुछ कोर्स किया था और एक प्राइवेट कम्पनी में लगा हुआ था।-To be continued-