वैसे तो गुजरे जमाने की बात हो गई
फिर भी एक पुरानी अलबम में आज की
गुजरे जमाने से मुलाकात हो गई।
पहले तो बड़ा हसीन लगा वो चेहरा
परन्तु फिर मुझे देख इतराने लगा वो चेहरा
बोला, देख कैसा चमकता था मैं
और अब तू क्या से क्या हो गई।
मैं भी इतराई और बोली,
अरे भोली! तूने देखा ही क्या था
तू तो कच्ची मिट्टी की मूरत के जैसी थी
और मैं आग में तप कर सोना हो गई।
वो फिर इतराया,कि देख मेरी आंखें
बिल्कुल झील के जैसी
और तुम्हारी काले गड्ढों सी हो गईं।
मैं भी इतराई और बोली,
अरे भोली! तुम्हारी झील तो खाली पड़ी थी
और इन गड्ढों में तो जिंदगी की हजार
कहानियां आबाद हो गई।
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