अपना किया सब याद रखते
दूसरों ने उनके लिए जो जो किया
वो सब जाते भूल
जिससे ज़रूरत है उसके पीछे रहते
जिससे काम निकल गया
उसे नहीं देते कोई तूल।
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सबसे बड़ी दीदी हमारी
आपसे ही सीखी सब समझदारी
बहुत सी अच्छी बातें और दुनियादारी
आपको प्यार सबसे बहुत
हम सब की भी बहुत ही दुलारी
आपकी अदाएं सबको लुभाएँ
आप हैं हमारी दीदी प्यारी
बचपन से ही आदर्श हमारी-
जीवन तो सही चल रहा है पर
आपकी कमी भारी लगती है
यूँ तो सब हैं आसपास लेकिन
भीड़ में भी एक जगह ख़ाली लगती है
यूँ ही हँस लेते हैं सब से मिलकर
पर दिल में तो तन्हाई लगती है
तुम थी तो ज़िंदगी में था अपनापन
अब तो ये दुनिया पराई लगती है।
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तुझसे ही हर ख़ुशी
तू ही मेरी ज़िंदगी
तू हँसे तो लगे,खिली है हर कली
तेरी उदासी से मानो मेरी जान निकली
जीवन की हर ख़ुशी तुझे मिले
सभी ख़्वाहिशों के गुल खिलें
तेरी हर राह चाहे कठिन हो या सरल
तुझे मनचाहे मुकाम तक लेकर जाए
तेरे जन्मदिन पर ये दुआ है मेरी
दुख तकलीफ़ तुझे छू तक न पाएँ।
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सब कुछ है फिर भी कुछ छूट सा गया लगता है
उम्र तो आगे बढ़ गई लेकिन मन अभी भी
पुराने गलियारों में अटक सा गया लगता है
जो बहुत ही अपने हुआ करते थे
वो अजनबी सा व्यवहार करने लगे हैं
ख़ुशी हो या ग़म अपने तक ही सीमित
रखने लगे हैं
वो भूल गए हैं उनकी ख़ुशी में ख़ुश
होने का हक़ हमें भी है
और उनके दुखों को कम कर पाए या नहीं
लेकिन हमारा साथ पाने का हक़ उन्हें भी है
उन्हें हम बताना चाहते हैं कि
पुराने दिन भले ही वापस न आ सकते हों
लेकिन हम तो पहले जैसे रह ही सकते हैं।
माना वो कहीं और हम कहीं और रहते हैं
तो क्या मन से तो जुड़े रह ही सकते हैं ।
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तुम मेरी और
मैं तुम्हारी दोस्त हूँ
मेरे ज़िक्र में तुम और
तुम्हारे ज़िक्र में
मैं शामिल हूँ
हम अपनी दोस्ती की
गहराई को
शब्दों में बयान
कर पाएँ या नहीं
लेकिन दिल कहता है
तुम मेरे क़रीब हो
और मैं तुम्हारे क़रीब हूँ।
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वो मेरी कॉलोनी की गलियाँ,वो मेरी प्यारी सखियाँ
वो दिन भी थे न्यारे,जब हम उड़ते फिरते थे सारे
वो महके महके से दिन थे और ख़ुशबू सी थी रातें
वो मामूली सी सौग़ातें और वो बेतुकी सी बातें
जो मज़े लेकर हम सुनते और बढ़ा चढ़ा कर सुनाते।
वो मेरी कॉलोनी की गलियाँ,वो मेरी प्यारी सखियाँ
वो ईंटों से घर बनाना और नक़ली का घर बसाना
वो सारा दिन बस खेलना और पढ़ाई से जी चुराना
वो माँ का हमें पुकारना और हमारा अनसुना करना
फिर घर जाकर चुपचाप माँ से डॉट खाना
वो मेरी कॉलोनी की गलियाँ,वो मेरी प्यारी सखियाँ।
फिर आया कॉलेज का जमाना,सबसे ख़ूबसूरत और मस्ताना
ना कोई फ़िक्र न चिंता बस कॉलेज में मस्तियाँ करना
वो यूँही लड़कों की बातें करना और बिना बात ही ख़ुश रहना
पढ़ने का तो मन न करना बस सपनों के महल बनाना
उन्हीं गलियों में घूमना और आपस में ही एक-दूसरे को छेड़ना
वो मेरी कॉलोनी की गलियाँ,वो मेरी प्यारी सखियाँ
पर पहचानीं ही नहीं जाती अब वो गलियाँ
और न जाने कहाँ कहाँ ब्याही गई वो सब सखियाँ।
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यूँ तो ज़िन्दगी में बहुत से लोग मिलते हैं
लेकिन कोई कोई सालों-साल
दिल पर छाए रहने हैं ।-
अपने दिल की हर बात
तुम्हें दिल खोलकर बता देती हूँ
और तुम्हारे दिल की सुन भी लेती हूँ
अपनी हर दुविधा, हर उलझन को
तुमसे सुलझवा लेती हूँ
और तुम्हारी सुलझा भी देती हूँ
कभी अपना ग़ुस्सा तुम पर उतार लेती हूँ
तो कभी तुम्हारा ग़ुस्सा सह भी लेती हूँ
कभी अपनी चलाती हूँ
तो कभी तुम्हारे अनुसार चल लेती हूँ
बिन कहे तुमसे बहुत कुछ चाहती हूँ
और तुम्हारे बिन बोले तुम्हें समझ भी लेती हूँ
कभी लगे नहीं तुम अनजान
शायद जन्मों से तुम्हारे साथ ही रहती हूँ।
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आँखों में भर लो उन लम्हों को
जो क़िस्मत से मिले हैं
सपनों-सा ये जहां
कुछ दिनों बाद सपनों
मैं ही आएगा ।
छूट जाएँगी ये जगहें पीछे
लेकिन हमें याद आएँगें
वो लम्हें जो हमेशा के लिए
हमारे दिल के किसी कोने में
छिप जाएँगे और
ये मस्तियाँ,ये मंजर
चुपके से हमें गुदगुदाएँगे।-