सूर्योदय से पहले जिस अखबार की कीमत होती है
सूर्यास्त के बाद वही रद्दी बन जाता है।
प्रेम भी अगर सही वक्त पर न मिले
तो वो शायद किसी काम का नहीं।
क्यों आते हो मेरी गली में हॉकर बनकर सूर्यास्त के बाद?-
सूर्योदय की पावन बेला ,प्रस्फुटित हो रही किरणें
लालिमा लिए दिवाकर ,चला रौशनी बिखेरने।
तरंगिणी की पारदर्शी धारा में ,प्रतिबिम्ब बड़ा निराला,
मानो है प्रकाश पुंज एक यहां भी ,जो फैला रहा उजियारा।
सुनकर कलरव पंछियों की निद्रा जा रही है।
दूर कहीं डालियों पर कोयल, मधुर स्वर में गा रही है।
दीप प्रज्वलित हुए मन्दिरों में वंदना गूंज रही चारों ओर।
भक्तिभाव में डूब भक्तगण भी, हो रहे भावविभोर।
स्वच्छ वायु में श्वास भर तन हो उठा ऊर्जावान
मानो शिथिल शरीर में प्रभु ने, भर दिये हो प्राण।
सौंदर्य से परिपूर्ण दृश्य करता प्रफुल्लित जन- जन को
प्रातःकाल योगाभ्यास ,स्वस्थ रखता पूरे तन को।
शीतल हवाओं की सनसनाहट घोल रही है मधुर राग मन में।
मानो बंशी बजा रहे हो मुरली मनोहर ,यहीं कहीं उपवन में।
-shalini
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तिल तिल बढ़ता ताप सूर्य का कर रहा प्रवेश उत्तरायण में
सुनहरी रश्मियाँ लिए दिनकर कर रहा पृथ्वी को कनकमयी ।-
प्रणय की इस मधुर बेला में जब तम रज में समाहित होता है
तब उत्पत्ति होती है रक्तकण की सूर्य नभ में प्रकाशित होता है-
कला कौशल ज़रूरी है, तन-मन से मेहनत भी ज़रूरी है।
अपनी मातृभूमि अपने देश के लिए समर्पण भी ज़रूरी है।
निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र के लिए लिप्त जीवन भी ज़रूरी है।
जो अपने है उनके लिए मन में एक "तर्पन" भी ज़रुरी है।
कोई भी दिक्कत जब भी आए ख़ुद को आइना दिखाने
मन मंदिर के कपाट खोलकर यथार्थ दर्पण भी ज़रूरी है।
किसी भी विधा में होना एक दूसरे को ज्ञान भी ज़रूरी है।
अपने साथ औरों की कृति का मन में सम्मान भी ज़रूरी है।
किसी क्षेत्र में दक्ष होने पर औरों को भी सिखाना चाहिए।
अपने ही जैसे सब को भी आपको पारंगत बनाना चाहिए।
अपनी जेब भर जाने के बाद देश का कोषागार भरना चाहिए।
अपनी इच्छापूर्ति हो जाने के बाद औरों की भी करनी चाहिए।
स्वयांनुसार सब ठीक ही होते हैं हमें बस बताना चाहिए।
कोई अपनी ग़लती नहीं मानता है, जतलाने आना चाहिए।
जीवन के वर्तमान अनुभव से मैंने इतना जाना है "अभि"।
ज़रूरी नहीं हरबार हर व्यक्ति से हमें लड़के जीतना चाहिए।-
रोशन हो जिसका सवेरा आशाओं की किरणों से
कोई बादल छिपा नहीं सकता है उसका सूरज..!!
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उठो , जागो नौजवानों और इस
जहां को अपने हुनर से रौशन करो ,
हर सुबह उजाले का आधार
रवि ही बने ये जरुरी तो नहीं..-
स्वर्णाभायुक्त रुपवान-राजकुमार तुम हो कौन
व्योम से उतर रहे हो शांतचित्त-आकर्षित मौन
कपोल-मधुप चक्षू निमिष पग शनै:-शनै: चाप
मौन मृदु निष्कंटक निष्पक्ष निष्कलंक निष्पाप
ग्रीवा तिर्यक नत-मुख अमृत कलश दोनों हाथ
पुलकित स्वर्ण-रश्मियाँ-सुसज्जित भानू-लोल
स्वर्ण-मोती निकला हो अभी जैसे सीपी-खोल
तुम्हें देख-पिया नित अभिवादन करती मैं मौन
पुनः पूछती स्वर्णिम-मय राजकुमार-तुम-कौन-
हे सूर्य रश्मियों नव अमृत-मय नव-श्रृंगार-विभूषित
अंग-अंग भ्रू-भ्रंग देह-स्नेह नित-नव तेज-संयोजित
नव पूरित नव आशा नव-ज्योतिर्मय दीप प्रज्वलित
मुझे करो सदेह ग्रहण या मुझमें तुम हो अवशोषित-
दृष्टिगोचर हो रहा
प्राची की प्राचीर पर
उभरती सिंदूरी आभा से
अभिसिंचित सुसज्जित मुखरित
विंहसते मधुर स्वपन सम
आकाश कुसुम
हो रहा निरंतर निर्माण कोई।
सुखद मन के द्वार पर प्रतीक्षित
आंगतुक लिए मृदुल मुस्कान कोई।
असंख्य मन के तारों में
बजता अहर्निश समर्पण गान कोई।
आबद्ध कर की प्रार्थना में आवाहित
सृष्टि का कल्याण कोई।
अनियंत्रित काल की इस भीड़ में
दृष्टिगत हो रही पहचान कोई।।
प्रीति
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