जो ख्वाबों मे आकर मुझे तंग करती हो,
नींद को भगाकर तुम मेरे संग रहती हो,
जब वजह तुम ही हो इन सुर्ख आँखो की,
तब क्यों इन्हें देखकर तुम दंग रहती हो।
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होली का महीना
तेरे हाथों मे लगा सुर्ख लाल रंग
जा मेरे गालों पर लगा
और बन गया
तेरे स्पर्श का पहला एहसास।।-
आँखे छुपाती नही, मैं छुपाता रहूँ
सबब सुर्ख आँखों का क्या कहूँ
कंकर, तिनका, धूल, सब बहाने है
लाल, सुर्ख आंखों से बहता है लहू
शिकायत, गिला, शिकवा कुछ नही
हमदम तो था, ना था तेरी जुस्तजू
झिझक, शर्म, हया, कहाँ है दरम्यां
सरे महफ़िल मगर, तुझे क्या कहूँ
कसक, ख़लिश यूँहीं नही बेवज़ह
हसरतें अधूरी, नामुम्किन आरज़ू
कतराए लहू बहता है, पलको पर
पूछता है, क्या बनकर अश्क़ बहूं
कितनी आज़माइश है बाकी,'राज',
ज़ुल्म-ए-जिंदगी कब तक, मैं सहूँ-
तेरे पगरज को सिन्दूर बना मांग में सजाया है
अब पिया तूने सुर्ख सिंदूर मांग में सजाना है-
अदाएं , सुर्ख, वो पैनी निगाहे,
वो होठों का तिल वो काली घटाएं,
उसका बात बात पे यूं लड़ना,
वो इतरा के चलना,
हम दिल हार न जाते तो और क्या करते।।-
आज सुर्ख हवाएँ हैं
मांग रहे वफाएं हैं
दिल दे रहा सदाएं है
चाहत ने फैलाई बाहें हैं-