अपनी खुशी में बेशक तू मुझे शामिल ना करना।
तेरे गम का हिस्सा बन सकूं बस इतनी सी मेहर करना।-
हे ईश्वर !
ये प्रार्थना है तुझसे
कोई भूल न हो मुझसे,
सुख-दुःख तो हैं आने-जाने
मेरे कारण कोई बुरा न माने,
मिला क्या मुझे कभी मैं ये न सोचूँ
कभी किसी को दुःख तो नहीं दिया मैंने???
इस बात पर हमेशा गौर करूँ मैं,
मेरे बजह से दिखे किसी के चहरे पर हसीं
तब मैं मानूँ मेरा ये जीवन सफल हुआ है,
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लाेग कहते हैं
पगला है..नासमझ है
जाने दाे इसे..
यही है सुख..और दुःख..
नासमझ हाेने का..-
दुख ताक में बैठा रहता है आजकल
जहाँ से कोई ख़ुशी की ख़बर आई नहीं
की झट कूद पड़ता है माहौल बिगाड़ने को
सुख की दरियादिली है कि
कुछ कहता नहीं इस मनचले कि हरकत पर
पर सुख क्यों इतना चुप है?
कहीं ऐसा तो नहीं दुख ने सुख से सेटिंग कर ली?
या शायद सुख जानता है
कि देर से ही सही
दुख का अंत निश्चित है-
तो जीवन का सार है
इसके साथ जीना कैसे है
समझना तो हमको है
क्या डरे इससे ये तो संग रहेगा हमारे
कभी छुपेगा तो कभी दिखेगा
ये ऐसे हमारे साथ रहेगा
इसके साथ भी हस के
जी ले ज़िन्दगी
शायद ये खुद छोड़ के चला
जाए हमें
क्यों कि आना जाना
जीवन में इसका काम है-
सुख मेरा दुख के जंगल मे
कांच सा था , फिरते है कब से
ना जाने कितनो मारे मारे लोग ,
को चुभ गया l जो होता है सह
लेते है ,कैसे हैं ?
बेचारे लोग l-
सुनो!
शाम लौट रही है
सूरज सिमट रहा है
मगर तुम फिक्र न करो
सहेज रखा है मैंने बख्से में
टुकड़ा-टुकड़ा चांद
तुम सबको जोड़ कर
मुंडेर पर टांग आओ
और हां अबकि चांद के चारो ओर
लगा देना थोड़े धैर्य के बादल
नहीं तो फिर से उग आएंगे तुम्हारे
आसमान में दर्भ के सितारे
और मंडराते हुए टूटकर
गिरेंगे मेरे आंगन में
सुबह..समेटना पड़ेगा मुझे अपने पल्लू से
तुम्हें शायद पता भी नहीं कि
ये कितने कटीले होते हैं
कितनी बार फाड़ा है इन्होंने
मेरा आंचल
सोखा है कितनी दफा
मेरा कितना
कतरा
सुकून...।-