जितनी बार टूटेंगे उतना ही और निखर जाएंगे,
हैं आरज़ू तुम्हारे दिल की, यहां से और किधर जाएंगे।-
मनाना ही ज़रूरी हो तो फिर,
ख़ुद को ही क्यों ना मना लीजिए।
लगाते हैं गले जिस तरह सभी को,
कभी ख़ुद को भी गले लगा लीजिए।
रोने से अगर कम ना हों ये मुश्किलें तो फिर,
मुश्किलों में थोड़ा मुस्कुरा लीजिए।
कौन समझा है,कौन समझेगा,
बेहतर है कि ख़ुद को समझा लीजिए।
यूं भी होगा कभी सोचा तो ना था,
अब जो है यही ज़िंदगी तो इसका भी मज़ा लीजिए।
क्यों कर दर्द नया लेते हैं आप रोज़,
ज़रा सी तो ख़ुद पर दया कीजिए।
हम दर्द आप ही क्यों न बन जाएं अपने,
किसी और से ऐसी उम्मीद ही क्यों किया कीजिए।-
क्यों फिर उनकी नज़र मुस्कुराई है।
लगता है कुछ ऐसा कि अब तो
दीवानों की दीवानगी रंग लाई है।
दिल चाहे तो भी मांग नहीं सकता है,
वही बात कि जिसमें उनकी रुसवाई है।
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खुशियों की कहां यारी मांगी,
हमने तो ग़म में हिस्सेदारी मांगी।
मोहब्बतों ने जिन्हें उजाड़ दिया,
हमने उन दोस्तों की वफादारी मांगी।
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ज़िंदगी बनाने में,
मेहनत लगती है यारों ख़्वाबों को सच कर दिखाने में।
मेहनत लगती है सचमुच किसी के दिल तक जाने में,
और भी मेहनत लगती है
फिर उसे रिश्ते को निभाने में।
ज़िंदगी है तो फिर भला मेहनत से घबराना क्यों?
जो सोच ही लिया तो फिर
मंज़िल से पहले ठहर जाना क्यों?-
कोई नहीं जानता यही हर किसी को लगता है,पर सोचने वाली बात यह है कि क्या हम किसी और की भी व्यथा ख़ुद समझते हैं? या कि समझने की कोशिश भर भी करते हैं एक बार ख़ुद से यह सवाल करना भी उतना ही ज़रूरी है, हमेशा ज़रूरी नहीं कोई हमें ही समझे.... हो सके तो आगे बढ़कर हमें दूसरों को समझना चाहिए।
आपका क्या ख़याल है???-
हर पल बस एक बेक़रारी थी।
कुछ होश में आने लगे हैं तब जाना,
कैसी अजब सी वो ख़ुमारी थी।
कोई समझता भी तो भला कैसे,
किसी में कहां इतनी समझदारी थी।-
ज्ञान ध्यान बुद्धि के राजा,
गणपति हमारे घर में पधारे।
पूर्ण होंगे सब काज हमारे,
अगर हों हम पर आशीष तुम्हारे।
सुख समृद्धि से भरो सभी के भंडारे।
कृपा सब पर प्रभु बनाए रखिये,
हों मनोरथ सिद्ध सभी के प्रभु प्यारे।-
कि तुम हो और हम हैं।
मोहब्बत भी है दरमियां,
भले अब वो थोड़ी कम है।
कुछ चुपचाप से हैं हम भी,
कुछ खोया हुआ मेरा सनम है।
तनहाइयां,खामोशियां और दुश्वारियां,
कुछ नहीं जनाब ज़िंदगी के ही करम हैं।
ये भी क्या कम है,
कि तुम हो और हम हैं।-