इतना सादापन था
कि तेरा रंग चढ़ता गया बखूबी!
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सादा प्यार अधूरा रह जाता है।
पिटारा नहीं है वादों का,
ना अदा कोई मेहजबिनों की,
सादा प्यार जो हो खुशनुमा सा,
वो अधूरा रह जाता है।
पूरी वफ़ा
पूरी शिद्दत
और आधा सा
सादा प्यार!-
सादापन मन का चेहरे पर दिखता हैं
हो मासूम प्यार तो दिल में उतरता हैं।
सादगी का दिवाना दिल आशिक़ बन जाता है
सच्ची है मोहब्बत तो इश्क़ ज़िन्दगी बन जाता है।-
मैं अपने आप से जब रूबरू हुआ
आईने में देख खुद को हैरान हुआ
देखकर ताजमहल का वो सादापन
मिरी सादगी मेरे अंदर हैजान(उद्वेग) हुआ
मैं किस कदर था खुद से ही बेख़बर
चढ़ाया नक़ाब तो लगा पहचान हुआ
जाने किस गुत्थी में उलझाया ख़ुद को
हर सिरा हर सिरे से फिर हलक़ान हुआ
आसां नहीं था मिरा मराहिलों से निकलना
जो देखा समन्दर मीठे झरने का तिश्ना हुआ
कई मौसम से गुज़रकर तपा है ये दिल
कभी ये पारा तो कभी बारां (वर्षा)हुआ-
'श्रृंगार'
भीड़ बाजारों में
ना जाने क्यों ढूँढती है,
क्यों खरीदना चाहती है
महंगी कीमतों में
वस्त्र, आभूषण आदि रूपों में
श्रृंगार के साधन क्यों तलाशती हैं
श्रृंगार को प्रेम, पवित्र आत्मा
और सादापन पर्याप्त हैं।-
सादगी ही सबसे अच्छा श्रृंगार है...
वरना फ़ैशन का क्या है..
वो तो हर रोज़ बदलता है....!!!-
सादापन आईना नहीं,किसी के चरित्र का
ये तो दर्पण है,उसके अंदरूनी चित्त का
आख़िर क्यों तुम निर्णायक बनते हो ?
आदमी मोहताज़ नहीं, तुम्हारे वित्ति का ।-
सादापन ही है जो महेकाती
उसमें तेरे भीतर की सुंदरता !
कम शब्दों में कुछ कह गए,
सादगी और संयम से प्यार करते !!
बहुत ही आए सज - धज के जो
भले ही सुंदर, पर दिल तोडते चलते!!
मुझे जो भाती तेरी सादगी जहाँ,
हो सच्चा प्यार तुम हो करते!!
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ना बिंदी ना काजल ना कोई श्रृंगार किया
सादेपन ने उसके किसी प्यासे को पानी पिलाने जैसा उपकार किया
किसी प्यासे को तो सादे पानी में भी अमृत नजर आता है
नहीं चाहिए उसे शर्बत और शिकंजी वो तो बस सादा पानी पी के ही तृप्त हो जाता है-
जाने कैसी भीड़ लगी थी रौनकों के चौखट पर।
हम तो महज उस सादगी पर मर मिटें।।-