Ravi Kadam   (✍कलम का मजदूर (रवि कदम))
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तुम्हें मेरी डायरी पढनी थी...
लो अब मैं खुली किताब हूँ।
Joined 29 July 2019


तुम्हें मेरी डायरी पढनी थी...
लो अब मैं खुली किताब हूँ।
Joined 29 July 2019
11 AUG 2024 AT 9:47

दावें करना और करके दिखाना,
दोनों के अलग-अलग पर्याय हैं।

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11 MAY 2024 AT 15:14

कोई फिर से जिंदगी पढ़ रहा है मेरी..
मैं फिर से इश्क़ लिख रहा हूं।

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11 MAY 2024 AT 1:07

परवाह, प्रेम का आख़िरी और स्थायी पड़ाव है।

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16 DEC 2023 AT 23:49

कल की याद तुम रख लो,
मुझे मेरा ये आज दे दो।

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10 DEC 2023 AT 9:10

कल शब अंधेरी थी बेशक,
सहर ये उजाला ख़ास है...

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27 AUG 2023 AT 0:28

पीले जर्द पन्नो पर
काले अक्षर
वो मेरी पुरानी क़िताब,
बिना लिखे पोस्टकार्ड,
पास हुए इम्तेहानो के पर्चे,
फेल हुई मोहब्बत के चिट्ठे,
टूटी हुई ऐनक और
दम तोड़ती कुछ कलम...
एक छोटी सी टेबल पर
मेरी पूरी जिंदगी का बोझ है।

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26 AUG 2023 AT 23:44

मुझे ख़ामोशी पढ़नी आती है
मैं शब्दों से बात करता हूं

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10 JUN 2023 AT 10:33

यूं तो
फुर्ती पसंद
आदम हूं मैं..
मगर तुम्हारे साथ
सुस्त हो जाना
अच्छा लगता है।

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11 MAR 2023 AT 2:44

सोचा के नया कुछ लिखूं आज़..
मुझे फ़िर पुराने किस्से याद आए

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8 SEP 2022 AT 23:02

जिंदगी का मतलब सवालों में है..
और हम जवाबों में अटके हुए हैं

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