अंतर्मन के द्वंद में,
हो भीषण संहार !
सारा गर्त वो पी जाए
दिल की पैनी धार !!-
❤ Stay with emotions & play with situatio... read more
तुम नन्हें कदमों से मेरी जिंदगी में आये !
और साथ जीने की एक नयी वज़ह ले आये !
तुमनें समेट डाला मुझमें,मेरा ही बिखरापन,
फ़िर मेरे ठहराव को एक नयी दिशा दे आए ll-
ये बेचैनियां डसने लगी है मुझे!
जैसे ये आब-ओ-हवा कुछ कहने लगी है मुझे !
मैंने कान लगाकर सुनना चाहा इन्हें,
ना-तरबियत ठहरी, ताना कसने लगी है मुझे ll-
किसी रोज ज़रा साथ बैठकर
अपनी तफ़सील-ए-राज बयान करना,
और फिर उस एक गुफ़्तगू के ज़रिए,
हम अपनी ज़िंदगी का नया अध्याय लिखेंगे l-
मौन और शान्ति...
दोनो के अर्थ एक से लगते है l
पर सन्दर्भ बिलकुल विपरित..
मौन...,गहन पीड़ा से परिपूर्ण !
तो शान्ति सुकून का प्रतिबिंब है !-
एक औरत वक्त आने पर,
भूल सकती है-
अपना बेटी,बहन,बहू और माँ होना
और बन जाती है सिर्फ़ एक पत्नि !
पर मर्दों से इसकी उम्मीद करना
सिर्फ़ वक्त जाया करना होगा l-
इक अग्नि परीक्षा
हर रोज़ आपका पीछा करेगी l
सही-गलत की परिभाषा
ये बस आपके नीयत पर निर्भर करेगी l-
रोज-रोज सोच कर ,
एक रोग दिल में धर लिया l
जिंदगी चली न कि,
रोग ने जकड़ लिया l
सामना हुआ नहीं ,
हाय प्रभात ढल गयी l
तोड़ कुछ मिला नहीं,
सुकून भी निगल गयी l
कारवा चलता रहा,
मुसीबतें छलती रही l
बेरूखी पनप-पनप,
नजदीकियां निगलती रही l
इक भोर के इन्तिज़ार में,
ज़िंदगी सदा फिसलती रही ll-
दिल अगर भर गया हो गुलामी में
तो मिलना ख़ुद से किसी रोज़
हँसने की चाहत रखकर किसी चौराहे पर ..
किसी चाय की टपरी पर..
और खुद को आज़ाद परिंदे की तरह समेट लेना l
हमेशा के लिए नहीं सही !
कुछ वक़्त की दरकार समझकर
या मन की आवाज़ समझकर ..
ज़िंदगी ने मौक़े हज़ार दिए होंगे बेशक,
पर कोशिश करके मिलना ख़ुद से
बस एक बार ख़ुद को इंसान समझकर l-
शब्द खोखले हैं !
ग़र ज़ज्बात न ढो सके अपने कँधों पर l
क्यूँकि शब्दों की तो, पराकाष्ठा ही है,
जज़्बातों के उठ रहे उफान को समेटना l
जज़्बातों की टोकरी ,
तो सदा बहती रहती है,जहन रूपी नदी में l
और शब्द,महज़ इक ज़रिया ही तो है,
उस नदी को पार कर पाने का l
तो शब्द खोखले हैं !
ग़र किसी ख्याल,एहसास को प्रेषित न कर सके l
क्यूँकि अनकहे ज़ज्बात,
कंधों पर मानो असहनीय बोझ का आभास कराते हैं ll-